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|संग्रह=खोया हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली
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सपना झरना नींद का, जागी आँखें प्यास
बरखा सबको दान दे, जिसकी जितनी प्यास
मोती-सी ये सीप में, माटी में ये घास
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