भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दुनिया के मेले में (माहिया) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:01, 13 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

78
बाहों में भर लेंगे।
जितने दुख तेरे
हम सारे हर लेंगे।
79
तुम बात नहीं करते
दुख कितना भारी
कहने से तुम डरते।
80
चुप्पी के मारे हैं
दर्द बहा कितना
चुपचाप किनारे हैं।
81
दुनिया के मेले में
खो न कहीं जाएँ
तूफाँ के रेले में।
82
इतना इसरार करें
कुछ भी हो जाए
हम ना तकरार करें।
83
तुमको जब पाया
दरिया प्यार भरा
बाहों में शरमाया।
84
आँसू निशदिन बरसे
तुमसे दूर हुए
प्राण बहुत तरसे।
85
बाहों में भर लेना
चुम्बन अधरों के
पलकों पर धर देना।
86
अब कुछ भी ना बोलो
छूकर अधरों से
आलिंगन से तोलो।