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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>ये निकहतों कि नर्म रवी, ये हवा, ये रात<br>याद आ रहे हैं इश्क़ के टूटे तअल्लुक़ातआ ल्लुक़ातत<br><br>मासूमियों की गोद में दम तोड़्ता है इश्क़्<br>अब भी कोई बना ले तो बिगड़ी नहीं है बात<br><br> इक उम्र कट गई है तेरे इन्तज़ार में<br>ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिनसे एक रात<br><br> हम अहले-इन्तज़ार के आहट पे कान थे<br>ठण्डी हवा थी, ग़म था तेरा, ढल चली थी रात<br><br> हर साई-ओ-हर अमल में मोहब्बत का हाथ है<br>तामीर-ए-ज़िन्दगी के समझ कुछ मुहरकात<br><br> अहल-ए-रज़ा में शान-ए-बग़ावत बग़ावत भी हो ज़रा<br>इतनी भी ज़िन्दगी न हो पाबंद-ए-रस्मियात<br><br> उठ बंदगी से मालिक-ए-तकदीर बन के देख<br>क्या वसवसा अजब का क्या काविश-ए-निज़ात<br><br> मुझको तो ग़म ने फ़ुर्सत-ए-ग़म भी न दी फ़िराक<br>दे फ़ुर्सत-ए-हयात न जैसे ग़ग़म-ए-हयात<br><br/poem>
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