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बहुत कुछ तुम्हारे शहर से है ग़ायब
यहाँ तक कि पानी नज़र से है ग़ायब
किसी ने ग़रीबों की बस्ती उजाड़ी
जला घर हमारा ख़बर से है ग़ायब
फ़कीरों सुनो और संतों भी सुन लो
दुआ ही वो क्या जो असर से हो ग़ायब
इधर पाँव मेरे थके जा रहे हैं
उधर मेरा सामां सफ़र से है ग़ायब
बड़ी बात तूने ग़ज़ल में कही है
नहीं ध्यान रक्खा बहर से है ग़ायब
जिसे देखिये वो बड़ा आदमी है
मगर आदमीयत इधर से है गा़यब
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