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कठोरता से वैसे ही, जैसे बेड़ी-हथकड़ी में कोई आदमी | कठोरता से वैसे ही, जैसे बेड़ी-हथकड़ी में कोई आदमी | ||
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सूरज की रोशनी में | सूरज की रोशनी में | ||
एक करोड़ साठ लाख लोग ऐसे हैं | एक करोड़ साठ लाख लोग ऐसे हैं | ||
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उनकी तेज़ आँखों और पैरों के कठोर पुट्ठों की वजह से | उनकी तेज़ आँखों और पैरों के कठोर पुट्ठों की वजह से | ||
और उनकी कलाइयों में दौड़ते गर्म-जवान ख़ून के लिए । | और उनकी कलाइयों में दौड़ते गर्म-जवान ख़ून के लिए । | ||
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मैं लाइनों में खड़े उन लोगों की उनींदी आँखों की | मैं लाइनों में खड़े उन लोगों की उनींदी आँखों की | ||
सरसराहट और हलचल सुनता हूँ | सरसराहट और हलचल सुनता हूँ | ||
− | अन्धेरे में | + | अन्धेरे में घिरे एक करोड़ साठ लाख लोग सो रहे हैं |
और उनमें से कुछ हमेशा सोते रहते हैं । | और उनमें से कुछ हमेशा सोते रहते हैं । | ||
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दुनिया को दुख की चपेट में ले लेंगे | दुनिया को दुख की चपेट में ले लेंगे | ||
खाएँगे, पीएँगे, मेहनत करेंगे ... | खाएँगे, पीएँगे, मेहनत करेंगे ... | ||
− | हत्यारों की | + | हत्यारों की अन्तहीन नौकरी करेंगे |
एक करोड़ साठ लाख लोग । | एक करोड़ साठ लाख लोग । | ||
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'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय''' | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय''' |
10:21, 17 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण
मैं आपके लिए गा रहा हूँ
नरमी से वैसे ही, जैसे एक पिता अपने मृत बच्चे से बोलता है
कठोरता से वैसे ही, जैसे बेड़ी-हथकड़ी में कोई आदमी
बिना हिले-डुले जकड़ा हुआ होता है ।
सूरज की रोशनी में
एक करोड़ साठ लाख लोग ऐसे हैं
जिन्हें उनके चमकते दाँतों की वजह से चुना गया
उनकी तेज़ आँखों और पैरों के कठोर पुट्ठों की वजह से
और उनकी कलाइयों में दौड़ते गर्म-जवान ख़ून के लिए ।
हरी घास पर सरक रहा है लाल रस
यह लाल रस काली मिट्टी को भिगो देता है
और एक करोड़ साठ लाख लोग मर रहे हैं ...
मरते जा रहे हैं ...
मारे जा रहे हैं ।
रात हो या दिन
मैं उन्हें कभी भूल नहीं पाता
अपनी याद को बनाए रखने के लिए उन्होंने
थपकी दी मेरे सिर पर
उन्होंने मेरे दिल को घेर लिया
और मैं चीख़ता हुआ वापिस उनके पास लौट आया
उनके घरों और औरतों के पास, उनके सपनों और खेलों के पास ।
मैं रात-रात भर जागता हूँ और खाइयों को सूँघता हूँ
मैं लाइनों में खड़े उन लोगों की उनींदी आँखों की
सरसराहट और हलचल सुनता हूँ
अन्धेरे में घिरे एक करोड़ साठ लाख लोग सो रहे हैं
और उनमें से कुछ हमेशा सोते रहते हैं ।
कल उनमें से कुछ ढह जाएँगे हमेशा के लिए गहरी नींद सोने के लिए
दुनिया को दुख की चपेट में ले लेंगे
खाएँगे, पीएँगे, मेहनत करेंगे ...
हत्यारों की अन्तहीन नौकरी करेंगे
एक करोड़ साठ लाख लोग ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय
अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
Carl Sandburg
KILLERS
I AM singing to you
Soft as a man with a dead child speaks;
Hard as a man in handcuffs,
Held where he cannot move:
Under the sun
Are sixteen million men,
Chosen for shining teeth,
Sharp eyes, hard legs,
And a running of young warm blood in their wrists.
And a red juice runs on the green grass;
And a red juice soaks the dark soil.
And the sixteen million are killing. . . and killing
and killing.
I never forget them day or night:
They beat on my head for memory of them;
They pound on my heart and I cry back to them,
To their homes and women, dreams and games.
I wake in the night and smell the trenches,
And hear the low stir of sleepers in lines--
Sixteen million sleepers and pickets in the dark:
Some of them long sleepers for always,
Some of them tumbling to sleep to-morrow for always,
Fixed in the drag of the world's heartbreak,
Eating and drinking, toiling. . . on a long job of
killing.
Sixteen million men.