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Kavita Kosh से
तेरी हक़ीक़तें पर्दे से आ गयीं बाहर
कहाँ तू जायेगा छुप के, आ नज़र मिला मुझसे
यहाँ उसी की क़द्र होती जिसके पैसा हो
ग़रीब हूँ तो कौन रखता वास्ता मुझसे
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