भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बस तेरी कृपा भरोसे / रामगोपाल 'रुद्र'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:09, 17 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण
बस तेरी कृपा भरोसे तेरे द्वारे पड़ा रहूँ,
लग जाय पार इतना ही तो हो जाए बेड़ा पार!
पर यह भी कहाँ देख सह पाती है तेरी महरी,
घर पर आते ही मुझे भगा देती है फिर बाज़ार!