"प्रणय का आह्वान / शंकरलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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मूक यौवन का निठुर उभार, | मूक यौवन का निठुर उभार, | ||
− | वेदना-सा, बन कर | + | वेदना-सा, बन कर साकार। |
हिला देता मानस के कोर, | हिला देता मानस के कोर, | ||
− | प्राण छू जाते, दुःख के | + | प्राण छू जाते, दुःख के छोर।। |
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निविड़ साँसों का यह उत्ताप, | निविड़ साँसों का यह उत्ताप, | ||
− | उठा लाता सपनों के | + | उठा लाता सपनों के पाप। |
हृदय का स्पन्दन कर चीत्कार- | हृदय का स्पन्दन कर चीत्कार- | ||
− | साँप-सा भरता है | + | साँप-सा भरता है फूत्कार।। |
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गुलाबी स्मृति के ये तार- | गुलाबी स्मृति के ये तार- | ||
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किसी का अनचाहा विश्वास-।। | किसी का अनचाहा विश्वास-।। | ||
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− | विदा कर देते | + | विदा कर देते नीरव मान, |
− | बबूलों-सा बन कर | + | बबूलों-सा बन कर अनजान। |
− | सौंप विस्मृति के कर में प्यास | + | सौंप विस्मृति के कर में प्यास- |
प्रणय का करते हैं आह्वान।। | प्रणय का करते हैं आह्वान।। | ||
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कि जैसे बालारुण के चरण- | कि जैसे बालारुण के चरण- | ||
− | नयन से यों मिल जाते | + | नयन से यों मिल जाते हैं। |
जलज के उर में भर आनंद, | जलज के उर में भर आनंद, | ||
मधुप का मन बहलाते हैं।। | मधुप का मन बहलाते हैं।। | ||
-२१ मार्च, १९६२ | -२१ मार्च, १९६२ | ||
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18:56, 24 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण
प्रणय का आह्वान
(१)
मूक यौवन का निठुर उभार,
वेदना-सा, बन कर साकार।
हिला देता मानस के कोर,
प्राण छू जाते, दुःख के छोर।।
(२)
निविड़ साँसों का यह उत्ताप,
उठा लाता सपनों के पाप।
हृदय का स्पन्दन कर चीत्कार-
साँप-सा भरता है फूत्कार।।
(३)
गुलाबी स्मृति के ये तार-
वहन कर पाते क्या मृदुभार?
स्वप्न के लोक, प्रणय की आस,
किसी का अनचाहा विश्वास-।।
(४)
विदा कर देते नीरव मान,
बबूलों-सा बन कर अनजान।
सौंप विस्मृति के कर में प्यास-
प्रणय का करते हैं आह्वान।।
(५)
मात्र, दो-क्षण तक भर उच्छ्वास,
स्वर्ण-सी बाँहों का सुखहार-
गले में डाल, इन्दु पर हास,
नयन में ढुलका, उर का प्यार-।।
(६)
कि जैसे बालारुण के चरण-
नयन से यों मिल जाते हैं।
जलज के उर में भर आनंद,
मधुप का मन बहलाते हैं।।
-२१ मार्च, १९६२