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"मुक्तक / शंकरलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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12:12, 25 नवम्बर 2020 का अवतरण

किसी पर रीझ जाते हो, किसी से रूठ जाते हो।
किसी के हाथ लगते हो, किसी से छूट जाते हो।।
भटकते हो हृदय मेरे, तभी सौन्दर्य सागर में-
कहीं तुम डूब जाते हो, कहीं तुम टूट जाते हो।।