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ताजमहल / साहिर लुधियानवी

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=साहिर लुधियानवी]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:साहिर लुधियानवीनज़्म]]
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~<poem>ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त<ref>प्रेम का द्योतक</ref>ही सही तुझको इस वादी-ए-रंगीं<ref>रमणीय स्थान</ref>से अक़ीदत<ref>श्रद्धा</ref> ही सही
ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही मेरी महबूब<brref>तुम को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सहीप्रेयसी<br><br/ref> कहीं और मिला कर मुझ से!
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से! बज़्म-ए-शाही<brref>बादशाहों के दरबार<br/ref>में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी सब्त<ref>अंकित</ref> जिस राह में हों सतवत-ए-शाही<ref>राजसी वैभव</ref> के निशाँ उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी
बज़्ममेरी महबूब! पस-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी <br>सब्त जिस राह पे हों सतवतपर्दा-ए-शाही के निशाँ तशहीर-ए-वफ़ा<br>उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी <brref>प्रेम के विज्ञापन के परदे के पीछे<br/ref>
मेरी महबूब पस-ए-पर्दा-ए-तशीर-ए-वफ़ा <br>तू ने सतवत <ref>राजसी वैभव</ref> के निशानों को तो देखा होता <br>मुर्दा शाहों के मक़ाबिर से बहलेवाली <brref>मक़बरों</ref> से बहलने वाली अपने तारीक <ref>अंधेरे</ref> मकानों को तो देखा होता <br><br>
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है <br>कौन कहता है कि सादिक़ <ref>पवित्र</ref> न थे जज़्बे उन के <brref>भावनायें</ref> उनके लेकिन उन के लिये तषीर तशहीर<ref>विज्ञापन</ref> का सामान नहीं <br>क्यूँ के क्योंकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे <brref>vनिर्धन</ref> थे
ये इमारात-ओ-मक़ाबिर ,<ref>भवन और मक़बरे</ref> ये फ़सीलें, <ref>परिकोटे</ref>ये हिसार <brref>क़िले</ref>मुतल-क़ुल्हुक्म शहनशाहों क़ुलहुक्म<ref>आदेश देने में स्वतन्त्र</ref> शहंशाहों की अज़मत के सुतूँ <brref>वैभव के खम्भे</ref>दामनसीना-ए-दहर पे उस रंग की गुलकारी है <brref>संसार के वक्षस्थल के</ref>के नासूर हैं ,कुहना<ref>पुराने</ref> नासूरजिस में शामिल जज़्ब है <ref>समाया हुआ है</ref> जिसमें तेरे और मेरे अजदाद का ख़ूँ <brref>पूर्वजों<br/ref>का ख़ूँ
मेरी महबूब! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी <br>जिनकी सन्नाई <ref>कारीगरी</ref> ने बख़्शी <ref>प्रदान की है</ref> है इसे शक्ल-ए-जमील <brref>सुन्दर रूप</ref>उन के प्यारों के मक़ाबिर <ref>मक़बरे</ref> रहे बेनाम-ओ-नमूद <brref>अनाम और बिना निशान के</ref>आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ंदील <brref>मोमबती<br/ref>
ये चमनज़ार <ref>उद्यान</ref> ये जमुना का किनारा ये महल <br>ये मुनक़्क़श <ref>नक़्क़ाशी किए हुए</ref>दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़ <br>इक शहनशाह ने दौलत का सहारा ले कर <br>हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक <br><br>
मेरे इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़ मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसेमुझ से! {{KKMeaning}} ...................................................................'''[[ताजमहल / साहिर लुधियानवी / सुमन पोखरेल|यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्नलाई यहाँ क्लिक गर्नुहोस्]]''' <br><br/poem>
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