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"घर के किसी कोने-अंतरे में / रमेश पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
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'''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स''' | '''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स''' |
15:55, 6 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण
द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स
2.
घर के किसी कोने-अंतरे में
बिना पूछे-जाँचे डाल देती अपना डेरा और
धूप, हवा, तुलसी, ताखे की तरह घर का हिस्सा बन जाती
घर दरवाज़ों के अलावा
हमसे बेहतर जानतीं उसे घर की दीवारें
दीवारों में उगते पौधे
पौधों में लगे द्विअधरीय फूल
फूलों में छिपे रंगीन कीड़े
और कीड़ों में उतरे महीन डर
जब-जब बादल और आसमान खेल खेलते
बादल हथेलियों से मूंदता आसमान
गौरैया हमारी आँखें अदृश्य परदों से ढँक देती
और बोलती- ’आईस-पाईस’
(’द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली की आत्मकथा का शीर्षक है