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{{KKRachna
|रचनाकार=सुधा गुप्ता
|संग्रह=सात छेद वाली मैं / सुधा गुप्ता
}}
<poem>
ताँका
बाँस की पोरी
निकम्मी खोखल मैं
बेसुरी , कोरी
तूने फूँक जो भरी
बन गई ‘बाँसुरी’
7
बड़ी सुबह
सूरज मास्टर 'दा’
किरण-छड़ी
ले, आते धमकाते
-0-
</poem>