"शैशव यौवन और सपने / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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− | + | सुन रे बच्चे! | |
− | + | सपने तेरे बड़े | |
− | + | नयन छोटे | |
− | + | आकाश तेरा घर | |
− | + | ले उड़ान जी-भर | |
− | धरा | + | नाप धरा है |
− | + | आकाश औ’ पाताल | |
− | + | पल भर में | |
− | + | मुठ्ठी भर का दिल | |
− | + | कितनी हलचल! | |
− | + | एक जुगनू | |
− | + | फ़्रॉक की अँजोर में | |
− | + | नन्ही मुठ्ठी में | |
− | + | दो बीरबहूटियाँ | |
− | + | मुग्ध शैशव! | |
− | + | यादों के मेले | |
− | + | चपल थी बालिका | |
− | + | भोला संसार | |
− | + | घी-डाली खिचड़ी थी | |
− | + | औ’ आम का आचार | |
− | + | तोड़ा घरौंदा | |
− | + | हँस रहा बालक | |
− | + | लात मारके | |
− | + | रोती खड़ी बालिका | |
− | + | ख़ुशी चकनाचूर | |
− | + | बिना पंख के | |
− | + | उड़ती है लड़की | |
− | + | खुले आकाश | |
− | + | बरज रही दुनिया | |
− | + | माने न कोई बाधा | |
− | + | सूरज हँसे | |
− | + | धरा कैसी दीवानी | |
− | + | अजब नशा | |
− | + | रोज़ देखे सपने | |
− | + | कभी न हों अपने | |
− | + | द्वार पे खड़ी | |
− | + | थर-थर काँपती | |
− | + | भूख औ’ डर | |
− | + | पन्नी की आस लिये | |
− | + | वह मलिन बच्ची | |
− | + | छोटा केबिन | |
− | + | फ़ाइलों का अम्बार | |
− | + | कम्प्यूटर पे | |
− | + | झुकी, सपने लिये | |
− | + | सहमी कबूतरी | |
− | + | निडर चोर | |
− | + | सब चुरा ले गया | |
− | + | नींद, सपने | |
− | + | छोड़ गया तो बस | |
− | + | सूजी-सूजी पलकें | |
− | + | धान की पौध | |
− | + | रोपती हैं औरतें | |
− | + | बोती सपने | |
− | + | बँधे नया छप्पर | |
− | + | बेटी जाये ‘पी’ घर | |
− | + | बड़ा कठिन | |
− | + | गुलाब को गूँथना | |
− | + | माला बनाना | |
− | + | पँखुरी-पँखुरी हो | |
− | + | बिखरता जाता वो | |
− | + | मन्दिर तक | |
− | + | बिछी है पगडण्डी | |
− | + | हाथों में फूल | |
− | + | किशोरी दौड़ रही | |
− | + | सपनों की पोटली | |
− | + | पेंग बढ़ाती | |
− | + | आशा के हिंडोले पे | |
− | + | युवा लड़की | |
− | + | आज़ाद आकाश में | |
− | + | पंछी भरे उड़ान | |
− | + | मीठी है हँसी | |
− | + | मधुर बचपन | |
− | + | बेफ़िक्र दौड़ | |
− | + | सपनों की गठरी | |
− | + | उठाए फिरे मन | |
− | + | रवि के नाम | |
− | + | भेजी है एक पाती | |
− | + | यूँ तो अनाम | |
− | + | पहुँच ही जायेगी | |
− | + | खोजती पता-धाम | |
− | + | साझा आँगन | |
− | + | साझी हैं ख़ुशियाँ भी | |
− | + | साझी है धूप | |
− | + | नहाए जी भर के | |
− | + | बरसी माँ की धूप | |
− | + | ठेले में लादे | |
− | + | हरी-भरी ककड़ी | |
− | हरी | + | बेचे सपने: |
− | + | ‘लैला की अँगुली लो | |
− | + | मँजनू की पसली’ | |
− | + | फूलों की नाव | |
− | + | सपन-पतवार | |
− | + | खोजती फिरे | |
− | + | स्वर्ण केशी कन्या को | |
− | + | भटकता यौवन | |
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− | फूलों | + | |
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+ | कहीं तो होगीं | ||
+ | हँसें तो फूल झरें | ||
+ | रोये तो मोती | ||
+ | रे, चाहत के जोगी! | ||
+ | क्या अब कहीं होगी? | ||
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16:10, 4 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण
सुन रे बच्चे!
सपने तेरे बड़े
नयन छोटे
आकाश तेरा घर
ले उड़ान जी-भर
नाप धरा है
आकाश औ’ पाताल
पल भर में
मुठ्ठी भर का दिल
कितनी हलचल!
एक जुगनू
फ़्रॉक की अँजोर में
नन्ही मुठ्ठी में
दो बीरबहूटियाँ
मुग्ध शैशव!
यादों के मेले
चपल थी बालिका
भोला संसार
घी-डाली खिचड़ी थी
औ’ आम का आचार
तोड़ा घरौंदा
हँस रहा बालक
लात मारके
रोती खड़ी बालिका
ख़ुशी चकनाचूर
बिना पंख के
उड़ती है लड़की
खुले आकाश
बरज रही दुनिया
माने न कोई बाधा
सूरज हँसे
धरा कैसी दीवानी
अजब नशा
रोज़ देखे सपने
कभी न हों अपने
द्वार पे खड़ी
थर-थर काँपती
भूख औ’ डर
पन्नी की आस लिये
वह मलिन बच्ची
छोटा केबिन
फ़ाइलों का अम्बार
कम्प्यूटर पे
झुकी, सपने लिये
सहमी कबूतरी
निडर चोर
सब चुरा ले गया
नींद, सपने
छोड़ गया तो बस
सूजी-सूजी पलकें
धान की पौध
रोपती हैं औरतें
बोती सपने
बँधे नया छप्पर
बेटी जाये ‘पी’ घर
बड़ा कठिन
गुलाब को गूँथना
माला बनाना
पँखुरी-पँखुरी हो
बिखरता जाता वो
मन्दिर तक
बिछी है पगडण्डी
हाथों में फूल
किशोरी दौड़ रही
सपनों की पोटली
पेंग बढ़ाती
आशा के हिंडोले पे
युवा लड़की
आज़ाद आकाश में
पंछी भरे उड़ान
मीठी है हँसी
मधुर बचपन
बेफ़िक्र दौड़
सपनों की गठरी
उठाए फिरे मन
रवि के नाम
भेजी है एक पाती
यूँ तो अनाम
पहुँच ही जायेगी
खोजती पता-धाम
साझा आँगन
साझी हैं ख़ुशियाँ भी
साझी है धूप
नहाए जी भर के
बरसी माँ की धूप
ठेले में लादे
हरी-भरी ककड़ी
बेचे सपने:
‘लैला की अँगुली लो
मँजनू की पसली’
फूलों की नाव
सपन-पतवार
खोजती फिरे
स्वर्ण केशी कन्या को
भटकता यौवन
कहीं तो होगीं
हँसें तो फूल झरें
रोये तो मोती
रे, चाहत के जोगी!
क्या अब कहीं होगी?
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