"गंध अकेलेपन की / छादोर वाङ्ग्मो / अनामिका" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
वह धुआँ सिगरेट का । | वह धुआँ सिगरेट का । | ||
− | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद | + | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनामिका''' |
</poem> | </poem> |
21:18, 4 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण
देखती थी उसको अक्सर
बैठी हुई खिड़की से सटकर
टकटकी उसकी बँधी शून्य पर
लच्छे घुँघराले धुएँ के
स्मृतियों की लट पर
स्मृतियाँ, जिनसे वह चाहती थी पीछा छुड़ाना
या शायद उनका तकिया लगाना
दो थे हम, दोनों एकदम अकेले
अदृश्य दीवार उठा गए थे बीच में अपने
छल्ले सिगरेट के
धुएँ में हम थे खोए
अपनी अलग-अलग दुनिया में
चली गई कब की वह, हारी हुई
बोझे से अपने दुख को दबाए, कहा नहीं उसने
पर गन्ध लग गई मुझको किसी तरह उसकी
ख़ामोश होंठों से, बेमन ही छूटते
उन धुएँ के छल्लों में
एकदम अकेली हूँ मैं अब तो
जितनी, रहती थी जब माँ के साथ
लेकिन वह अन्तिम थक्का धुएँ का
भभका था उसकी चिता से ही
गन्ध जानती हूँ मैं उसकी
उस निचाट अकेलेपन की
फैलता है अब तक फेफड़ों में मेरे
वह धुआँ सिगरेट का ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनामिका