भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार }} <poem> अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ ...) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे | कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे | ||
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो! | अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो! | ||
+ | |||
+ | ...................................................................... | ||
+ | '''[[पर्ख, नझार पर्दा एकछिन / गुलजार / सुमन पोखरेल|यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ ।]]''' | ||
+ | |||
</Poem> | </Poem> |
15:24, 10 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे हैं।
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है।
यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
......................................................................
यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ ।