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"पांव में ये जो आबले हुए हैं / राज़िक़ अंसारी" के अवतरणों में अंतर
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04:53, 18 दिसम्बर 2020 का अवतरण
पांव में ये जो आबले हुए हैं तब कहीं जा के रास्ते हुए हैं
आप क़ातिल नहीं हैं मान लिया ख़ून में हाथ क्यों सने हुए हैं
ज़ख्म तो आपने भी देखा है आपके होंट क्यों सिले हुए हैं
झूट क्या सच है क्या पता है हमें हम भी थोड़ा पढ़े लिखे हुए हैं
कब से बैठे हुए हैं एक जगह क्या परिंदों के पर बंधे हुए है
मैच का रुख़ बदल भी सकता है खेल में हम अभी बने हुए हैं
याद जब भी किया मुसीबत में आप के साथ हम खड़े हुए हैं </poem>