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"थक जाओगे गिन गिन के सर इतने हैं / राज़िक़ अंसारी" के अवतरणों में अंतर

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05:00, 18 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण

थक जाओगे गिन गिन के सर इतने हैं
लोग तुम्हारे क़द से बढ़ कर इतने हैं

अश्कों ने भी साथ हमारा छोड़ दिया
ज़ख्म हमारे दिल के अंदर इतने हैं

फ़ुरसत के लम्हात मयस्सर हों कैसे
कमरे में यादों के मंज़र इतने हैं

जाने कितनी नस्लें ठोकर खाएंगी
हम लोगों की राह में पत्थर इतने हैं

हमने ख़ुद ही सच्चाई तस्लीम न की
आईने तो घर के अंदर इतने हैं

जाने कितने चहरे पीले पड़ जाएं
राज़ हमारे दिल के अंदर इतने हैं