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"दिल पर हमारे ज़ख़्म हैं ये सब नये नये / राज़िक़ अंसारी" के अवतरणों में अंतर

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05:10, 18 दिसम्बर 2020 का अवतरण

अब लोगों को कौन बताए क्या सच है
सब की आंखों के आगे धुंधला सच है

कोई भी तैयार नहीं है पीने को
वक़्त के हाथों में इतना कड़वा सच है

जेसै भी हो हज़्म तुझे करना होगा
मेरे बेटे ये तेरा पहला सच है

अपनी आंखें धोका भी खा सकती हैं
झूट ने सर से पावं तलक पहना सच है

हाथ क़लम होने के बाद में सोचेंगे
यार अभी जो लिखना है लिखना सच है

झूट लिखेंगे हम तो क़लम की है तौहीन
हम को अपनी ग़ज़लों में लिखना सच है