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"अंधेरे का सफ़र / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
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किसी सागर किनारे | किसी सागर किनारे | ||
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छोड़ लहरों के सहारे | छोड़ लहरों के सहारे |
14:18, 7 अक्टूबर 2008 का अवतरण
तुम्हारी चांदनी का क्या करूँ मैं
अंधेरे का सफ़र मेरे लिए है
किसी गुमनाम के दुख-सा
अजाना है सफ़र मेरा
पहाड़ी शाम-सा तुमने
मुझे वीरान में घेरा
तुम्हारी सेज को ही क्यों सजाऊँ
समूचा ही शहर मेरे लिए है
थका बादल, किसी सौदामिनी
के साथ सोता है
मगर इंसान थकने पर बड़ा लाचार होता है
गगन की दामिनी का क्या करूँ मैं
धरा की हर डगर मेरे लिए है
किसी चौरास्ते की रात-सा
मैं सो नहीं पाता
किसी के चाहने पर भी
किसी का हो नहीं पाता
मधुर है प्यार, लेकिन क्या करूँ मैं
जमाने का ज़हर मेरे लिए है
नदी के साथ मैं, पहुँचा
किसी सागर किनारे
गई ख़ुद डूब , मुझ को
छोड़ लहरों के सहारे
निमंत्रण दे रही लहरें करूँ क्या
कहाँ कोई भँवर मेरे लिए है।