भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जैसे शिशु ढूँढता / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:48, 5 जनवरी 2021 के समय का अवतरण

जैसे कोई ढूँढता है
खोई हुई किताब
घर में इधर -उधर
किसी पुराने रैक में,
खोई पगडण्डी पर
अपनी डगर,
बरसों पुराना छोड़ा
अपना घर,
किसी बच्चे की
निर्मल मुस्कान,
पूछता है अपने आँसुओं से
खोए साथी का पता,
भेंट में दी डायरी या पेन
और खोई कमीज
जो किसी ने छुपा दी
कहीं तहखाने में
जैसे शिशु ढूँढता
अपनी खोई हुई माँ को
वैसे ही मैं
तुम्हें ढूँढता हूँ !