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"तेरी वो रुलाई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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09:04, 5 जनवरी 2021 के समय का अवतरण

चीरकरके हिमशिखर को
बींधकरके मर्म मेरा
दहला गई करुणा भरी
मुझे तेरी वो रुलाई।

कुटिल समय समझता नहीं
अनुराग की भाषा कभी
लोग पढ़ते ही कहाँ , कब
लिपि जो मर्म पर लिखी ।
भटके शिशु की सिसकी-सी
याद तेरी रोज़ आई ।

ये वक़्त कोरोना हुआ
संक्रमित सम्बन्ध सारे
लिखते रहे कपटी सखा
छल-भरे अनुबन्ध सारे ।
अपराध की सारी कथाएँ
सदैव उनके मन भाई ।