"हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! / रामकुमार वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | ||
− | + | सोने-चान्दी से नहीं किन्तु तुमने मिट्टी से किया प्यार । | |
− | सोने- | + | |
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− | तुमने मिट्टी से | + | |
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हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | ||
− | + | जन कोलाहल से दूर-कहीं एकाकी सिमटा-सा निवास, | |
− | जन कोलाहल से दूर- | + | रवि-शशि का उतना नहीं कि जितना प्राणों का होता प्रकाश |
− | + | श्रम वैभव के बल पर करते हो जड़ में चेतन का विकास | |
− | कहीं एकाकी सिमटा-सा निवास, | + | दानों-दानों में फूट रहे सौ-सौ दानों के हरे हास, |
− | + | यह है न पसीने की धारा, यह गंगा की है धवल धार । | |
− | रवि-शशि का उतना नहीं | + | |
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− | कि जितना प्राणों का होता प्रकाश | + | |
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− | श्रम वैभव के बल पर करते हो | + | |
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− | जड़ में चेतन का विकास | + | |
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− | दानों-दानों में फूट रहे | + | |
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− | सौ-सौ दानों के हरे हास, | + | |
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− | यह है न पसीने की धारा, | + | |
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− | यह गंगा की है धवल धार । | + | |
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हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | ||
− | + | अधखुले अंग जिनमें केवल है कसे हुए कुछ अस्थि-खण्ड | |
− | अधखुले अंग जिनमें केवल | + | जिनमें दधीचि की हड्डी है, यह वज्र इन्द्र का है प्रचण्ड ! |
− | + | जो है गतिशील सभी ऋतु में गर्मी वर्षा हो या कि ठण्ड | |
− | है कसे हुए कुछ अस्थि- | + | जग को देते हो पुरस्कार देकर अपने को कठिन दण्ड ! |
− | + | झोपड़ी झुकाकर तुम अपनी ऊँचे करते हो राज-द्वार ! | |
− | जिनमें दधीचि की हड्डी है, | + | |
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− | यह वज्र | + | |
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− | जो है गतिशील सभी ऋतु में | + | |
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− | गर्मी वर्षा हो या कि | + | |
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− | जग को देते हो पुरस्कार | + | |
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− | देकर अपने को कठिन | + | |
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− | झोपड़ी झुकाकर तुम अपनी | + | |
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− | ऊँचे करते हो राज-द्वार ! | + | |
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हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | ||
− | + | ये खेत तुम्हारी भरी-सृष्टि तिल-तिल कर बोए प्राण-बीज | |
− | ये खेत तुम्हारी भरी-सृष्टि | + | वर्षा के दिन तुम गिनते हो, यह परिवा है, यह दूज, तीज |
− | + | बादल वैसे ही चले गए, प्यासी धरती पाई न भीज | |
− | तिल-तिल कर | + | तुम अश्रु कणों से रहे सींच इन खेतों की दुख भरी खीज |
− | + | बस, चार अन्न के दाने ही नैवेद्य तुम्हारा है उदार | |
− | वर्षा के दिन तुम गिनते हो, | + | |
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− | यह परिवा है, यह दूज, तीज | + | |
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− | बादल वैसे ही चले गए, | + | |
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− | प्यासी धरती पाई न भीज | + | |
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− | तुम अश्रु कणों से रहे सींच | + | |
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− | इन खेतों की | + | |
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− | बस चार अन्न के दाने ही | + | |
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− | नैवेद्य तुम्हारा है उदार | + | |
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हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | ||
− | + | यह नारी-शक्ति देवता की कीचड़ है जिसका अंग-राग | |
− | यह नारी-शक्ति देवता की | + | यह भीर हुई सी बदली है जिसमें साहस की भरी आग, |
− | + | कवियो ! भूलो उपमाएँ सब मत कहो, कुसुम, केसर, पराग, | |
− | कीचड़ है जिसका अंग-राग | + | यह जननी है, जिसके गीतों से मृत अंकुर भी उठे जाग, |
− | + | उसने जीवन भर सीखा है, सुख से करना दुख का दुलार ! | |
− | यह भीर हुई सी बदली है | + | |
− | + | ||
− | जिसमें साहस की भरी आग, | + | |
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− | कवियो ! भूलो उपमाएँ सब | + | |
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− | मत कहो, कुसुम, केसर, पराग, | + | |
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− | यह जननी है, जिसके गीतों से | + | |
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− | मृत | + | |
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− | उसने जीवन भर सीखा है, | + | |
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− | सुख से करना दुख का दुलार ! | + | |
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हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | ||
− | + | ये राम-श्याम के सरल रूप, मटमैले शिशु हंस रहे खूब, | |
− | ये राम-श्याम के सरल रूप, | + | ये मुन्ना, मोहन, हरे कृष्ण, मंगल, मुरली, बच्चू, बिठूब, |
− | + | इनको क्या चिन्ता व्याप सकी, जैसे धरती की हरी दूब | |
− | मटमैले शिशु | + | थोड़े दिन में ही ठण्ड, झड़ी, गर्मी सब इनमें गई डूब, |
− | + | ये ढाल अभी से बने छीन लेने को दुर्दिन के प्रहार ! | |
− | ये | + | |
− | + | ||
− | मंगल, मुरली, बच्चू, बिठूब, | + | |
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− | इनको क्या | + | |
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− | जैसे धरती की हरी दूब | + | |
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− | थोड़े दिन में ही | + | |
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− | गर्मी सब इनमें गई डूब, | + | |
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− | ये | + | |
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− | छीन लेने को दुर्दिन के प्रहार ! | + | |
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हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | ||
− | + | तुम जन मन के अधिनायक हो तुम हँसो कि फूले-फले देश | |
− | तुम जन मन के अधिनायक हो | + | आओ, सिंहासन पर बैठो यह राज्य तुम्हारा है अशेष ! |
− | + | उर्वरा भूमि के नये खेत के नये धान्य से सजे वेश, | |
− | तुम हँसो कि फूले-फले देश | + | तुम भू पर रहकर भूमि-भार धारण करते हो मनुज-शेष |
− | + | अपनी कविता से आज तुम्हारी विमल आरती लूँ उतार ! | |
− | आओ, सिंहासन पर बैठो | + | |
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− | यह राज्य तुम्हारा है अशेष ! | + | |
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− | उर्वरा भूमि के नये खेत के | + | |
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− | नये धान्य से सजे वेश, | + | |
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− | तुम भू पर रहकर भूमि-भार | + | |
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− | धारण करते हो मनुज-शेष | + | |
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− | अपनी कविता से आज तुम्हारी | + | |
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− | विमल आरती लूँ उतार ! | + | |
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हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | हे ग्राम देवता ! नमस्कार ! | ||
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21:26, 6 जनवरी 2021 के समय का अवतरण
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
सोने-चान्दी से नहीं किन्तु तुमने मिट्टी से किया प्यार ।
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
जन कोलाहल से दूर-कहीं एकाकी सिमटा-सा निवास,
रवि-शशि का उतना नहीं कि जितना प्राणों का होता प्रकाश
श्रम वैभव के बल पर करते हो जड़ में चेतन का विकास
दानों-दानों में फूट रहे सौ-सौ दानों के हरे हास,
यह है न पसीने की धारा, यह गंगा की है धवल धार ।
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
अधखुले अंग जिनमें केवल है कसे हुए कुछ अस्थि-खण्ड
जिनमें दधीचि की हड्डी है, यह वज्र इन्द्र का है प्रचण्ड !
जो है गतिशील सभी ऋतु में गर्मी वर्षा हो या कि ठण्ड
जग को देते हो पुरस्कार देकर अपने को कठिन दण्ड !
झोपड़ी झुकाकर तुम अपनी ऊँचे करते हो राज-द्वार !
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
ये खेत तुम्हारी भरी-सृष्टि तिल-तिल कर बोए प्राण-बीज
वर्षा के दिन तुम गिनते हो, यह परिवा है, यह दूज, तीज
बादल वैसे ही चले गए, प्यासी धरती पाई न भीज
तुम अश्रु कणों से रहे सींच इन खेतों की दुख भरी खीज
बस, चार अन्न के दाने ही नैवेद्य तुम्हारा है उदार
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
यह नारी-शक्ति देवता की कीचड़ है जिसका अंग-राग
यह भीर हुई सी बदली है जिसमें साहस की भरी आग,
कवियो ! भूलो उपमाएँ सब मत कहो, कुसुम, केसर, पराग,
यह जननी है, जिसके गीतों से मृत अंकुर भी उठे जाग,
उसने जीवन भर सीखा है, सुख से करना दुख का दुलार !
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
ये राम-श्याम के सरल रूप, मटमैले शिशु हंस रहे खूब,
ये मुन्ना, मोहन, हरे कृष्ण, मंगल, मुरली, बच्चू, बिठूब,
इनको क्या चिन्ता व्याप सकी, जैसे धरती की हरी दूब
थोड़े दिन में ही ठण्ड, झड़ी, गर्मी सब इनमें गई डूब,
ये ढाल अभी से बने छीन लेने को दुर्दिन के प्रहार !
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
तुम जन मन के अधिनायक हो तुम हँसो कि फूले-फले देश
आओ, सिंहासन पर बैठो यह राज्य तुम्हारा है अशेष !
उर्वरा भूमि के नये खेत के नये धान्य से सजे वेश,
तुम भू पर रहकर भूमि-भार धारण करते हो मनुज-शेष
अपनी कविता से आज तुम्हारी विमल आरती लूँ उतार !
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !