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+ | दर्द की जागीर है | ||
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+ | मन एकाकी | ||
+ | गहन अंधकार | ||
+ | दीप-सा जला। | ||
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+ | मन की रेत | ||
+ | कुरेदी तनिक -सी | ||
+ | नमी ही नमी। | ||
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+ | कोमल तंतु | ||
+ | विश्वास जब टूटा | ||
+ | नेह भी रूठा। | ||
+ | 5 | ||
+ | देह से परे | ||
+ | कभी मन को मेरे | ||
+ | छू कर देखो। | ||
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+ | करूँ प्रतीक्षा | ||
+ | ये मन-महाकाव्य | ||
+ | बाँचे तो कोई । | ||
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+ | नभ में तारे | ||
+ | उभरे मन पर | ||
+ | पीड़ा के छाले। | ||
+ | 8 | ||
+ | भाव प्रकोष्ठ | ||
+ | कितनी आकृतियाँ | ||
+ | फिर भी रिक्त । | ||
+ | 9 | ||
+ | आँसू न कहो | ||
+ | पीड़ा के सागर से | ||
+ | छलकी बूँदें । | ||
+ | 10 | ||
+ | आँखों में नमी | ||
+ | उमड़ी है बदली | ||
+ | मन में कहीं । | ||
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+ | '''मन बगिया | ||
कलरव करते | कलरव करते | ||
− | यादों के पंछी | + | यादों के पंछी''' |
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00:16, 19 जनवरी 2021 के समय का अवतरण
1
प्रेम के किस्से
दर्द की जागीर है
हमारे हिस्से ।
2
मन एकाकी
गहन अंधकार
दीप-सा जला।
3
मन की रेत
कुरेदी तनिक -सी
नमी ही नमी।
4
कोमल तंतु
विश्वास जब टूटा
नेह भी रूठा।
5
देह से परे
कभी मन को मेरे
छू कर देखो।
6
करूँ प्रतीक्षा
ये मन-महाकाव्य
बाँचे तो कोई ।
7
नभ में तारे
उभरे मन पर
पीड़ा के छाले।
8
भाव प्रकोष्ठ
कितनी आकृतियाँ
फिर भी रिक्त ।
9
आँसू न कहो
पीड़ा के सागर से
छलकी बूँदें ।
10
आँखों में नमी
उमड़ी है बदली
मन में कहीं ।
11
मन बगिया
कलरव करते
यादों के पंछी