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"प्रीत के पाँव / सुरंगमा यादव" के अवतरणों में अंतर

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साँसों की पूँजी
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बन्द न कर सकी
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कोई तिजोरी।
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बजती रही
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समय सरगम
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अबाध क्रम।
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शब्द दो-चार
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प्रकट कर देते
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भाव-विचार ।
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भीड़ है बड़ी
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मानवता की कमी
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फिर भी पड़ी ।
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सत्य अटल
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मिलता कर्मफल
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आज या कल।
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66
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पाषाण जैसा
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मानव मन हुआ
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आँसू न दया।
 
67
 
67
मेघ कहार
+
श्रमिक भाग्य
दूर देश से लाया
+
श्रम की पूँजी हाथ
वर्षा बहार।
+
बारहों मास।
 
68
 
68
नित नवीन
+
उजड़े बाग
प्रकृति की सुषमा
+
प्रदूषित नदियाँ
नहीं उपमा।
+
मानव जाग।
 
69
 
69
आँचल हरा
+
करे उजाड़
ढूँढ़ती वसुंधरा
+
अहंकार की बाढ़
कहीं खो गया।
+
रिश्तों  का गाँव ।
 
70
 
70
थक के सोया
+
वर्षा की झड़ी
दिवस शिशु सम
+
मजदूर के घर
साँझ होते ही ।
+
ठण्डी सिगड़ी।
71
+
88
मौन हो गये
+
ये विहग वाचाल
+
निशीथ काल।
+
 
+
77
+
 
प्रीत के पाँव
 
प्रीत के पाँव
 
बिन पायल बाजें
 
बिन पायल बाजें
 
सुनता गाँव
 
सुनता गाँव
 
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00:48, 19 जनवरी 2021 के समय का अवतरण

61
साँसों की पूँजी
बन्द न कर सकी
कोई तिजोरी।
62
बजती रही
समय सरगम
अबाध क्रम।
63
शब्द दो-चार
प्रकट कर देते
भाव-विचार ।
64
भीड़ है बड़ी
मानवता की कमी
फिर भी पड़ी ।
65
सत्य अटल
मिलता कर्मफल
आज या कल।
66
पाषाण जैसा
मानव मन हुआ
आँसू न दया।
67
श्रमिक भाग्य
श्रम की पूँजी हाथ
बारहों मास।
68
उजड़े बाग
प्रदूषित नदियाँ
मानव जाग।
69
करे उजाड़
अहंकार की बाढ़
रिश्तों का गाँव ।
70
वर्षा की झड़ी
मजदूर के घर
ठण्डी सिगड़ी।
88
प्रीत के पाँव
बिन पायल बाजें
सुनता गाँव