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"एक ही छत / सुरंगमा यादव" के अवतरणों में अंतर
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+ | साँसों की पूँजी | ||
+ | बन्द न कर सकी | ||
+ | कोई तिजोरी। | ||
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+ | बजती रही | ||
+ | समय सरगम | ||
+ | अबाध क्रम। | ||
+ | 69 | ||
+ | शब्द दो-चार | ||
+ | प्रकट कर देते | ||
+ | भाव-विचार । | ||
+ | 70 | ||
+ | भीड़ है बड़ी | ||
+ | मानवता की कमी | ||
+ | फिर भी पड़ी । | ||
+ | 71 | ||
+ | सत्य अटल | ||
+ | मिलता कर्मफल | ||
+ | आज या कल। | ||
+ | 72 | ||
+ | पाषाण जैसा | ||
+ | मानव मन हुआ | ||
+ | आँसू न दया। | ||
+ | 73 | ||
+ | श्रमिक भाग्य | ||
+ | श्रम की पूँजी हाथ | ||
+ | बारहों मास। | ||
+ | 74 | ||
+ | उजड़े बाग | ||
+ | प्रदूषित नदियाँ | ||
+ | मानव जाग। | ||
+ | 75 | ||
+ | करे उजाड़ | ||
+ | अहंकार की बाढ़ | ||
+ | रिश्तों का गाँव । | ||
+ | 76 | ||
+ | वर्षा की झड़ी | ||
+ | मजदूर के घर | ||
+ | ठण्डी सिगड़ी। | ||
+ | 77 | ||
+ | '''एक ही छत''' | ||
कमरों की तरह | कमरों की तरह | ||
बँटे हैं मन | बँटे हैं मन | ||
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00:57, 19 जनवरी 2021 के समय का अवतरण
67
साँसों की पूँजी
बन्द न कर सकी
कोई तिजोरी।
68
बजती रही
समय सरगम
अबाध क्रम।
69
शब्द दो-चार
प्रकट कर देते
भाव-विचार ।
70
भीड़ है बड़ी
मानवता की कमी
फिर भी पड़ी ।
71
सत्य अटल
मिलता कर्मफल
आज या कल।
72
पाषाण जैसा
मानव मन हुआ
आँसू न दया।
73
श्रमिक भाग्य
श्रम की पूँजी हाथ
बारहों मास।
74
उजड़े बाग
प्रदूषित नदियाँ
मानव जाग।
75
करे उजाड़
अहंकार की बाढ़
रिश्तों का गाँव ।
76
वर्षा की झड़ी
मजदूर के घर
ठण्डी सिगड़ी।
77
एक ही छत
कमरों की तरह
बँटे हैं मन