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− | शायद मन | + | शायद मन पसन्द बाँके मुर्गे के लिए कोई पैगाम दे रही है वह |
या फिर | या फिर | ||
− | + | आदमियों की दुनिया में | |
बचे रहने की किसी कोशिश पर | बचे रहने की किसी कोशिश पर | ||
− | मशविरा कर रही है | + | मशविरा कर रही है भरोसेमन्द सखी के साथ |
− | + | कि प्लेट में मसाले की ख़ुशबू का हिस्सा बनना | |
अशुभ है मुर्गों के लिए | अशुभ है मुर्गों के लिए | ||
− | अशुभ है नाश्ते में मुर्गियों के | + | अशुभ है नाश्ते में मुर्गियों के अण्डों का शामिल किया जाना |
मुर्गी कुड़कड़ाई है | मुर्गी कुड़कड़ाई है | ||
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नेवला भी हो सकता है वहाँ | नेवला भी हो सकता है वहाँ | ||
साँप भी | साँप भी | ||
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मुर्गी की आवाज़ के दायरे में | मुर्गी की आवाज़ के दायरे में | ||
वहाँ केवल भय है | वहाँ केवल भय है | ||
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मुर्गी कुड़कुड़ाई है | मुर्गी कुड़कुड़ाई है | ||
दाने छिड़के जा रहे हैं आस-पास | दाने छिड़के जा रहे हैं आस-पास | ||
− | + | चूजों को तालीम देने का वक़्त है यह मुर्गी के लिए | |
ज़िन्दगी और अनाज के सरोकार पर कुछ बोल रही है वह | ज़िन्दगी और अनाज के सरोकार पर कुछ बोल रही है वह | ||
मुर्गे के लिए हिदायत भी हो सकती है उसमें | मुर्गे के लिए हिदायत भी हो सकती है उसमें | ||
कि चूजों का हिस्सा न खाए वह | कि चूजों का हिस्सा न खाए वह | ||
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रचनाकाल : 1991 विदिशा | रचनाकाल : 1991 विदिशा | ||
− | '''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर | + | '''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि [[कुँअर रवीन्द्र]] के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।''' |
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16:24, 19 जनवरी 2021 के समय का अवतरण
मुर्गी कुड़कुड़ाई है
सहेली मुर्गी से अपने जोड़े का चर्चा कर रही है शायद
शायद मन पसन्द बाँके मुर्गे के लिए कोई पैगाम दे रही है वह
या फिर
आदमियों की दुनिया में
बचे रहने की किसी कोशिश पर
मशविरा कर रही है भरोसेमन्द सखी के साथ
कि प्लेट में मसाले की ख़ुशबू का हिस्सा बनना
अशुभ है मुर्गों के लिए
अशुभ है नाश्ते में मुर्गियों के अण्डों का शामिल किया जाना
मुर्गी कुड़कड़ाई है
बिल्ली या बाज के कहीं बिलकुल पास होने का
संकेत है यह
नेवला भी हो सकता है वहाँ
साँप भी
दोनों साथ-साथ नहीं होंगे वहाँ
मुर्गी की आवाज़ के दायरे में
वहाँ केवल भय है
सतर्क भय केवल
अपनी बिरादरी और बच्चों को सावधान करता
मुर्गी कुड़कुड़ाई है
दाने छिड़के जा रहे हैं आस-पास
चूजों को तालीम देने का वक़्त है यह मुर्गी के लिए
ज़िन्दगी और अनाज के सरोकार पर कुछ बोल रही है वह
मुर्गे के लिए हिदायत भी हो सकती है उसमें
कि चूजों का हिस्सा न खाए वह
रचनाकाल : 1991 विदिशा
शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।