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"बादलों की चादर / अनिता मंडा" के अवतरणों में अंतर

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नियत में क्यों खोट।
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विरही काटे
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चाँद की खुरपी ले
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सारी रतियाँ
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तारों की फ़सल को
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नींद नहीं अखियाँ।
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रात आती है
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चाँद का ख़ंजर ले
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क़त्ल करने
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बैठ यादों की ओट
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बचाई जान मैंने।
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आओगे तुम
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दिल को समझाया
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राहें निहारी
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कानों में पहन के
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आहटों का सागर।
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कोहरे की चादर
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उनींदे नैन
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अलसाई सी भोर
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ढूढ़ें धूप का कोर।
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हरसिंगार
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हर शाम सँवरे
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भोर बिखरे
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बाँटने को ख़ुशबू
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बूँद-बूँद से झरे।
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रूह को मेरी
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अब करार आया
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मिली रौशनी
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इबादत किराया
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हर पल चुकाया।
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कैसे दिखते
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हमको ये सितारे
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इतने प्यारे
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जो राह में तुम यूँ
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अँधेरे न बिछाते।
  
 
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00:55, 3 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

21
भरी हुई है
बादलों की चादर
सलवटों से
बिछाकर इसको
चाँद तारे सोये हैं
22
राह देखती
खड़ी छलनी लिए
व्रती नारियां
हटा बादल ओट
नियत में क्यों खोट।
23
विरही काटे
चाँद की खुरपी ले
सारी रतियाँ
तारों की फ़सल को
नींद नहीं अखियाँ।
24
रात आती है
चाँद का ख़ंजर ले
क़त्ल करने
बैठ यादों की ओट
बचाई जान मैंने।
25
आओगे तुम
दिल को समझाया
राहें निहारी
कानों में पहन के
आहटों का सागर।
26
ओढ़ निकली
कोहरे की चादर
उनींदे नैन
अलसाई सी भोर
ढूढ़ें धूप का कोर।
28
हरसिंगार
हर शाम सँवरे
भोर बिखरे
बाँटने को ख़ुशबू
बूँद-बूँद से झरे।
29
रूह को मेरी
अब करार आया
मिली रौशनी
इबादत किराया
हर पल चुकाया।
30
कैसे दिखते
हमको ये सितारे
इतने प्यारे
जो राह में तुम यूँ
अँधेरे न बिछाते।