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− | + | 05 फरवरी 1916 में गया के मैगरा ग्राम में जन्मे छायावादोत्तर काल के सुविख्यात कवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री, जिन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित भी किया है उन थोड़े-से कवियों में रहे हैं, जिन्हें हिंदी कविता के पाठकों से बहुत मान-सम्मान मिला है। आचार्य का काव्य संसार बहुत ही विविध और व्यापक है. प्रारंभ में उन्होंने संस्कृत में कविताएँ लिखीं। फिर महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी में आए। | |
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+ | कविता के क्षेत्र में उन्होंने कुछ सीमित प्रयोग भी किए और सन चालीस के दशक में कई छंदबद्ध काव्य-कथाएँ लिखीं, जो 'गाथा` नामक उनके संग्रह में संकलित हैं।इसके अलावा उन्होंने कई काव्य-नाटकों की रचना की और 'राधा` जैसा श्रेष्ठ महाकाव्य रचा।परंतु शास्त्री की सृजनात्मक प्रतिभा अपने सर्वोत्तम रूप में उनके गीतों और ग़ज़लों में प्रकट होती है। | ||
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+ | इस ह्नेत्र में उन्होंने नए-नए प्रयोग किए जिससे हिंदी गीत का दायरा काफी व्यापक हुआ।वैसे, वे न तो नवगीत जैसे किसी आंदोलन से जुड़े, न ही प्रयोग के नाम पर ताल, तुक आदि से खिलवाड़ किया।छंदों पर उनकी पकड़ इतनी जबरदस्त है और तुक इतने सहज ढंग से उनकी कविता में आती हैं कि इस दृष्टि से पूरी सदी में केवल वे ही निराला की ऊंचाई को छू पाते हैं। | ||
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+ | 'रूप-अरूप, 'तीर तरंग, 'शिवा, 'मेघ-गीत, 'अवंतिका, 'कानन, 'अर्पण आदि इनके मुख्य काव्य संग्रह हैं। ये 'साहित्य वाचस्पति, 'विद्यासागर, 'काव्य-धुरीण तथा 'साहित्य मनीषी आदि अनेक उपाधियों से सम्मानित हुए तथा पद्मश्री जैसे राजकीय पुरस्कार को ठुकरा चुके हैं। |
08:33, 5 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
05 फरवरी 1916 में गया के मैगरा ग्राम में जन्मे छायावादोत्तर काल के सुविख्यात कवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री, जिन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित भी किया है उन थोड़े-से कवियों में रहे हैं, जिन्हें हिंदी कविता के पाठकों से बहुत मान-सम्मान मिला है। आचार्य का काव्य संसार बहुत ही विविध और व्यापक है. प्रारंभ में उन्होंने संस्कृत में कविताएँ लिखीं। फिर महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी में आए।
कविता के क्षेत्र में उन्होंने कुछ सीमित प्रयोग भी किए और सन चालीस के दशक में कई छंदबद्ध काव्य-कथाएँ लिखीं, जो 'गाथा` नामक उनके संग्रह में संकलित हैं।इसके अलावा उन्होंने कई काव्य-नाटकों की रचना की और 'राधा` जैसा श्रेष्ठ महाकाव्य रचा।परंतु शास्त्री की सृजनात्मक प्रतिभा अपने सर्वोत्तम रूप में उनके गीतों और ग़ज़लों में प्रकट होती है।
इस ह्नेत्र में उन्होंने नए-नए प्रयोग किए जिससे हिंदी गीत का दायरा काफी व्यापक हुआ।वैसे, वे न तो नवगीत जैसे किसी आंदोलन से जुड़े, न ही प्रयोग के नाम पर ताल, तुक आदि से खिलवाड़ किया।छंदों पर उनकी पकड़ इतनी जबरदस्त है और तुक इतने सहज ढंग से उनकी कविता में आती हैं कि इस दृष्टि से पूरी सदी में केवल वे ही निराला की ऊंचाई को छू पाते हैं।
'रूप-अरूप, 'तीर तरंग, 'शिवा, 'मेघ-गीत, 'अवंतिका, 'कानन, 'अर्पण आदि इनके मुख्य काव्य संग्रह हैं। ये 'साहित्य वाचस्पति, 'विद्यासागर, 'काव्य-धुरीण तथा 'साहित्य मनीषी आदि अनेक उपाधियों से सम्मानित हुए तथा पद्मश्री जैसे राजकीय पुरस्कार को ठुकरा चुके हैं।