भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रेखाएं / भारती पंडित" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारती पंडित |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> हाथों की अनंत र…) |
Arti Singh (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
गौर से देखा करती हूँ .. | गौर से देखा करती हूँ .. | ||
जब मिल जाती है अनायास सफलता | जब मिल जाती है अनायास सफलता | ||
− | तो इन | + | तो इन लकीरों में एक |
नई लकीर खोज लेती हूँ | नई लकीर खोज लेती हूँ | ||
कि भाग्य साथ दे रहा है | कि भाग्य साथ दे रहा है | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
असफलता हाथ आते है | असफलता हाथ आते है | ||
तो इनमें ढूंढ लेती हूँ | तो इनमें ढूंढ लेती हूँ | ||
− | एकाध कटी-फटी रेखा ' | + | एकाध कटी-फटी 'रेखा' |
और बनाती हूँ पोजिटिव ऐटीट्यूड | और बनाती हूँ पोजिटिव ऐटीट्यूड | ||
कि किस्मत ही खराब है | | कि किस्मत ही खराब है | | ||
</Poem> | </Poem> |
05:15, 2 मार्च 2021 के समय का अवतरण
हाथों की अनंत रेखाएं
चिकनी, समतल या कटी-फटी
कभी छोटी या लम्बी दौड़ती सी
हर रोज इन्हें मैं
गौर से देखा करती हूँ ..
जब मिल जाती है अनायास सफलता
तो इन लकीरों में एक
नई लकीर खोज लेती हूँ
कि भाग्य साथ दे रहा है
यही रेखाएं बना जाती है
संबल अक्सर मेरा
जब प्रयत्नों के बाद भी
असफलता हाथ आते है
तो इनमें ढूंढ लेती हूँ
एकाध कटी-फटी 'रेखा'
और बनाती हूँ पोजिटिव ऐटीट्यूड
कि किस्मत ही खराब है |