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बीच की दराज दराज़ में बन्द हूं हूँ ।ऊपर होता हूं हूँ तो
पैर टूटता है
नीचे सरकता हूंहूँ
सिर फूटता है ।
मैं कहां जाऊं कहाँ जाऊँ !क्या करूं करूँ !कैसे रहूं रहूँ इस अन्धेरे में !
कब तक काग़ज़ों से पिचका हुआ !