भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देख सुकुमारी नारी / अनुराधा पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुराधा पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:25, 7 मार्च 2021 के समय का अवतरण
देख सुकुमारी नारी, बनते जो ब्रह्मचारी, ऐसे पापी प्रेमियों की जाति बाँट दीजिये।
एक कलिका को छुए, दूसरे का रस पिए, ऐसे कामी भ्रमर का पंख काट दीजिए।
अँगुली पकड़ चाहे, पकडूं मृणाल बाँहे, ऐसों को तो पूर्व में ही, घोर डाँट दीजिए।
फिर भी जो न वे माने, लगे छल छंद गाने, ऐसे खल कामियों को, चार चाँट दीजिए।