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जिन्दगी / केदारनाथ अग्रवाल

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रचनाकारः [[{{KKRachna|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:केदारनाथ अग्रवाल]]{{KKCatKavita}}<poem>देश की छाती दरकते देखता हूँ!थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों को,पेट-पूजा की कमाई में जुता मैं देखता हूँ!सत्य के जारज सुतों को,लंदनी गौरांग प्रभु की, लीक चलते देखता हूँ!डालरी साम्राज्यवादी मौत-घर में,आँख मूँदे डाँस करते देखता हूँ!!
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~देश की छाती दरकते देखता हूँ!मैं अहिंसा के निहत्थे हाथियों को,पीठ पर बम बोझ लादे देखता हूँ।देव कुल के किन्नरों को,मंत्रियों का साज साजे,देश की जन-शक्तियों का,खून पीते देखता हूँ,क्रांति गाते देखता हूँ!!
देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों राजनीतिक धर्मराजों कोजुएँ में,<br>पेट-पूजा की कमाई में जुता द्रोपदी को हारते मैं देखता हूँ!<br>सत्य ज्ञान के जारज सुतों सब सूरजों को,<br>लंदनी गौरांग प्रभु कीअर्थ के पैशाचिकों से, <br>लीक चलते रोशनी को माँगते मैं देखता हूँ!<br>डालरी साम्राज्यवादी मौत-घर मेंयोजनाओं के शिखंडी सूरमों को,<br>आँख मूँदे डाँस करते तेग अपनी तोड़ते मैं देखता हूँ!!<br><br>
देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>मैं अहिंसा के निहत्थे हाथियों खाद्य मंत्री को,<br>पीठ पर बम बोझ लादे हमेशा शूल बोते देखता हूँ।<br>हूँदेव कुल के किन्नरों भुखमरी कोजन्म देते,<br>मंत्रियों का साज साजे,<br>वन-महोत्सव को मनाते देखता हूँ!देश की जनलौह-शक्तियों कानर के वृद्ध वपु से,<br>खून पीते दण्ड के दानव निकलते देखता हूँ,<br>!क्रांति गाते व्यक्ति की स्वाधीनता पर गाज गिरते देखता हूँ!देश के अभिमन्युयों को कैद होते देखता हूँ!!<br><br>
देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>राजनीतिक धर्मराजों को जुएँ मेंमुक्त लहरों की प्रगति पर,<br>द्रोपदी को हारते मैं जन-सुरक्षा के बहाने,रोक लगाते देखता हूँ!<br>ज्ञान के सब सूरजों चीन की दीवार उठते देखता हूँ!क्राँतिकारी लेखनी को,<br>अर्थ के पैशाचिकों से,<br>रोशनी को माँगते मैं जेल जाते देखता हूँ!<br>योजनाओं लपलपाती आग के शिखंडी सूरमों कोभी,<br>तेग अपनी तोड़ते मैं ओंठ सिलते देखता हूँ!!<br><br>
देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>खाद्य मंत्री को हमेशा शूल बोते राष्ट्र-जल में कागजी, छवि-यान बहता देखता हूँ<br>भुखमरी को जन्म देते,<br>वन-महोत्सव को मनाते तीर पर मल्लाह बैठे और हँसते देखता हूँ!<br>लौह-नर योजनाओं के वृद्ध वपु फरिश्तों को गगन सेभूमि आते,<br>दण्ड के दानव निकलते देखता हूँ!<br>व्यक्ति की स्वाधीनता और गोबर चोंथ पर गाज गिरते सानंद बैठे,मौन-मन बंशी बजाते, गीत गाते,मृग मरीची कामिनी से प्यार करते देखता हूँ!<br>देश शून्य शब्दों के अभिमन्युयों को कैद होते हवाई फैर करते देखता हूँ!!<br><br>
देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>मुक्त लहरों की प्रगति परबूचड़ों के न्याय-घर में,<br>जन-सुरक्षा लोकशाही के बहानेकरोड़ों राम-सीता,<br>रोक लगाते मूक पशुओं की तरह बलिदान होते देखता हूँ!<br>चीन की दीवार उठते वीर तेलंगानवों पर मृत्यु के चाबुक चटकते देखता हूँ!<br>क्राँतिकारी लेखनी को,<br>जेल जाते क्रांति की कल्लोलिनी पर घात होते देखता हूँ!<br>लपलपाती आग वीर माता के भी,<br>हृदय के शक्ति-पय कोओंठ सिलते शून्य में रोते विलपते देखता हूँ!!<br><br>
देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>राष्ट्र-जल में कागजीनामधारी त्यागियों को, छवि-यान बहता देखता हूँमैं धुएँ के वस्त्र पहने,<br>तीर पर मल्लाह बैठे और हँसते मृत्यु का घंटा बजाते देखता हूँ!<br>योजनाओं के फरिश्तों को गगन से भूमि आतेस्वर्ण मुद्रा की चढ़ौती भेंट लेते,<br>और गोबर चोंथ पर सानंद बैठेराजगुरुओं को, मुनाफाखोर को आशीष देते,<br>मौन-मन बंशी बजातेसौ तरह के कमकरों को दुष्ट कह कर, गीत गाते,<br>मृग मरीची कामिनी से प्यार करते देखता हूँ!<br>शून्य शब्दों के हवाई फैर करते शाप देते प्राण लेते देखता हूँ!!<br><br>
देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>बूचड़ों के न्याय-घर कौंसिलों मेंकठपुतलियों को भटकते,<br>लोकशाही के करोड़ों राम-सीताराजनीतिक चाल चलते,<br>मूक पशुओं की तरह बलिदान होते देखता हूँ!<br>वीर तेलंगानवों पर मृत्यु रेत के कानून के चाबुक चटकते रस्से बनाते देखता हूँ!<br>क्रांति वायुयानों की कल्लोलिनी पर घात होते देखता हूँ!<br>उड़ानों की तरह तकरीर करते,वीर माता के हृदय के शक्तिझूठ का लम्बा बड़ा इतिहास गढ़ते,गोखुरों से सिंधु भरते,देश-पय द्रोही रावणों को<br>शून्य में रोते विलपते राम भजते देखता हूँ!!<br><br>
देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>नामधारी त्यागियों नाश के वैतालिकों को,<br>मैं धुएँ के वस्त्र पहने,<br>संविधानी शासनालय को सभा मेंमृत्यु का घंटा दंड की डौड़ी बजाते देखता हूँ!<br>स्वर्ण मुद्रा कंस की चढ़ौती भेंट लेते,<br>राजगुरुओं प्रतिमूर्तियों को, मुनाफाखोर को आशीष देते,<br>सौ तरह मुन्ड मालाएँ बनाते देखता हूँ!काल भैरव के कमकरों सहोदर भाइयों को दुष्ट कह कर,<br>शाप देते प्राण लेते रक्त की धारा बहाते देखता हूँ!!<br><br>
देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>कौंसिलों में कठपुतलियों व्यास मुनि को भटकतेधूप में रिक्शा चलाते,<br>राजनीतिक चाल चलतेभीम,<br>रेत के कानून के रस्से बनाते अर्जुन को गधे का बोझ ढोते देखता हूँ!<br>वायुयानों की उड़ानों की तरह तकरीर करतेसत्य के हरिचंद को अन्याय-घर में,<br>झूठ का लम्बा बड़ा इतिहास गढ़तेकी देते गवाही देखता हूँ!द्रोपदी को और शैव्या को, शची को,<br>गोखुरों से सिंधु भरतेरूप की दूकान खोले,<br>देश-द्रोही रावणों लाज को राम भजते दो-दो टके में बेचते मैं देखता हूँ!!<br><br>
देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>नाश के वैतालिकों को<br>संविधानी शासनालय को सभा में<br>दंड की डौड़ी बजाते देखता हूँ!<br>कंस की प्रतिमूर्तियों को,<br>मुन्ड मालाएँ बनाते देखता हूँ!<br>काल भैरव के सहोदर भाइयों को,<br>रक्त की धारा बहाते देखता हूँ!!<br><br> देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>व्यास मुनि को धूप में रिक्शा चलाते,<br>भीम, अर्जुन को गधे का बोझ ढोते देखता हूँ!<br>सत्य के हरिचंद को अन्याय-घर में,<br>झूठ की देते गवाही देखता हूँ!<br>द्रोपदी को और शैव्या को, शची को,<br>रूप की दूकान खोले,<br>लाज को दो-दो टके में बेचते मैं देखता हूँ!!<br><br> देश की छाती दरकते देखता हूँ!<br>मैं बहुत उत्तप्त होकर<br>भीम के बल और अर्जुन की प्रतिज्ञा से ललक कर,<br>क्रांतिकारी शक्ति का तूफान बन कर,<br>शूरवीरों की शहादत का हथौड़ा हाथ लेकर,<br>श्रृंखलाएँ तोड़ता हूँ<br>जिन्दगी को मुक्त करता हूँ नरक से!!<br><br>
(कविता संग्रह, "कहें केदार खरी खरी"" से)
</poem>
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