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"जीने का दुख / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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जीने का दुख
          न जीने के सुख से बेहतर है,

     इसलिए कि
                      दुख में तपा आदमी
आदमी आदमी के लिए तड़पता है;

सुख से सजा आदमी
आदमी आदमी के लिए
आदमी नहीं रहता है ।

21 अक्तूबर 1980