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− | भाई, कविताएँ जोड़ते हुए, कृपया, प्रूफ़ की शुद्धि / अशुद्धि का भी ख़याल रखा करें। विगत 17 नवम्बर को आपने जोशना बनर्जी आडवानी की एक कविता जोड़ी है -- अंत्येष्टि से पूर्व। इस कविता के शीर्षक में ही वर्तनी की भूल है। आपने अंतयेष्टि लिखा है, जबकि लिखा जाना चाहिए -- अंत्येष्टि। | + | भाई, कविताएँ जोड़ते हुए, कृपया, प्रूफ़ की शुद्धि / अशुद्धि का भी ख़याल रखा करें। विगत 17 नवम्बर को आपने जोशना बनर्जी आडवानी की एक कविता जोड़ी है -- अंत्येष्टि से पूर्व। इस कविता के शीर्षक में ही वर्तनी की भूल है। आपने अंतयेष्टि लिखा है, जबकि लिखा जाना चाहिए -- अंत्येष्टि। इस एक ही कविता में वर्तनी की कम से कम पन्द्रह-बीस ग़लतियाँ थीं। इन ग़लतियों के साथ कविताएँ जोड़कर आप कविता कोश में अधूरा योगदान कर रहे हैं। अभी फिलहाल तो मैंने इस कविता की सभी आवश्यक ग़लतियों को सुधार दिया है। लेकिन आपसे अनुरोध है कि आगे से इसका ख़याल रखें। |
सादर | सादर | ||
अनिल जनविजय | अनिल जनविजय | ||
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+ | प्रिय महोदय / महोदया ! | ||
+ | विनम्र निवेदन है कि कविताओं में अगर किन्हीं पंक्तियों को गैप देकर जोड़ा गया है तो अपने मन से उस गैप को न हटाएँ। कवि ने ख़ुद जैसे कविता की कल्पना की है, वैसे ही उस कविता को हम कोश में जोड़ते हैं। आप अपने मन से कविताओं में बदलाव न करें। | ||
+ | आपने केदारनाथ अग्रवाल की कविता ’जीने का दुख’ में इस तरह का बदलाव किया था। मैंने उस बदलाव को निरस्त कर दिया है। | ||
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+ | 08 मार्च 2021 |
00:49, 9 मार्च 2021 के समय का अवतरण
भाई, कविताएँ जोड़ते हुए, कृपया, प्रूफ़ की शुद्धि / अशुद्धि का भी ख़याल रखा करें। विगत 17 नवम्बर को आपने जोशना बनर्जी आडवानी की एक कविता जोड़ी है -- अंत्येष्टि से पूर्व। इस कविता के शीर्षक में ही वर्तनी की भूल है। आपने अंतयेष्टि लिखा है, जबकि लिखा जाना चाहिए -- अंत्येष्टि। इस एक ही कविता में वर्तनी की कम से कम पन्द्रह-बीस ग़लतियाँ थीं। इन ग़लतियों के साथ कविताएँ जोड़कर आप कविता कोश में अधूरा योगदान कर रहे हैं। अभी फिलहाल तो मैंने इस कविता की सभी आवश्यक ग़लतियों को सुधार दिया है। लेकिन आपसे अनुरोध है कि आगे से इसका ख़याल रखें। सादर अनिल जनविजय
प्रिय महोदय / महोदया ! विनम्र निवेदन है कि कविताओं में अगर किन्हीं पंक्तियों को गैप देकर जोड़ा गया है तो अपने मन से उस गैप को न हटाएँ। कवि ने ख़ुद जैसे कविता की कल्पना की है, वैसे ही उस कविता को हम कोश में जोड़ते हैं। आप अपने मन से कविताओं में बदलाव न करें। आपने केदारनाथ अग्रवाल की कविता ’जीने का दुख’ में इस तरह का बदलाव किया था। मैंने उस बदलाव को निरस्त कर दिया है। सादर अनिल जनविजय 08 मार्च 2021