भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अकेले हैं (माहिया) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
हम बहुत अकेले हैं | हम बहुत अकेले हैं | ||
क़िस्मत के हाथों | क़िस्मत के हाथों | ||
− | उजड़े | + | उजड़े ये मेले हैं। |
71 | 71 | ||
साथ रहें बेगाने | साथ रहें बेगाने |
14:08, 9 मार्च 2021 के समय का अवतरण
70
हम बहुत अकेले हैं
क़िस्मत के हाथों
उजड़े ये मेले हैं।
71
साथ रहें बेगाने
शातिर दुनिया को
कैसे हम पहचाने ।
72
हम किसकी बात कहें
कब था चैन मिला
हरदम आघात मिले।
73
तुम चन्दा अम्बर के
मैं केवल तारा
चाहूँगा जी भरके।
74
तुम केवल मेरे हो
साँसों में खुशबू
बनकरके घेरे हो।
75
जग दुश्मन है माना
रिश्ता यह दिल का
जब तक साँस निभाना।
76
तुझको उजियार मिले
बदले में मुझको
चाहे अँधियार मिले।
77
तुम सागर हो मेरे
बूँद तुम्हारी हूँ
तुझसे ही लूँ फेरे।