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"अभिसिंचित करता पानी / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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जीवन की आशाएँ सर्वदा
अभिसिंचित करता पानी।
तृप्त-मन अभिलाषाएँ सदा
यों परिपूरित करता पानी।
न बहाओ मुझे तुम पानी सा,
यह अनुसूचित करता पानी।
मोल समझ तब ही है आता
जब आशा पर फिरता पानी।

( विश्व जल दिवस ,22 मार्च, 201)