"पकी पकी फ़सल / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर
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पकी पकी फसल लहराए ओढ़े पीली सरसों की चुनरिया | पकी पकी फसल लहराए ओढ़े पीली सरसों की चुनरिया | ||
तेरे खेत में मक्का-बाजरा, मेरे, गेहूँ की बालियाँ | तेरे खेत में मक्का-बाजरा, मेरे, गेहूँ की बालियाँ | ||
गाँव-गाँव घूम रही टोलियाँ, होलिका-दहन तैयारी | गाँव-गाँव घूम रही टोलियाँ, होलिका-दहन तैयारी | ||
− | किसी की खाट, किसी का पाट, | + | किसी की खाट, किसी का पाट, किसी के हाथ लकड़ियाँ! |
नीला, पीला, हरा, जामुनी, नारंगी, लाल रंग सजा है | नीला, पीला, हरा, जामुनी, नारंगी, लाल रंग सजा है | ||
प्रकृति ने करवट बदली है, टेसू सा रंग खिला है! | प्रकृति ने करवट बदली है, टेसू सा रंग खिला है! | ||
− | + | डारी - डारी कूक रही, हूक उठाती, कारी-कारी कोयलिया | |
− | किसलय के चिकने पात छिप, झाँक रही, शर्मीली | + | किसलय के चिकने पात छिप, झाँक रही, शर्मीली गौरैया ~ |
मंद सुगंध पुरवा से मिल कर परिमल पाँव पसारे | मंद सुगंध पुरवा से मिल कर परिमल पाँव पसारे | ||
− | + | आम्र मंजरी ऊँची टहनी से, फागुन की तान, सुनावे! | |
"पीहू पीहू कहाँ मेरे पिय?" पपीहा बैन पुकारे | "पीहू पीहू कहाँ मेरे पिय?" पपीहा बैन पुकारे | ||
− | गोरी की, प्रेम-अगन, | + | गोरी की, प्रेम-अगन, नयन जल पी, ज्वाला बन दहकावे। |
"हे विधाता! क्यों भेज्यो फागुन?" बिरहा जिया अकुलाए | "हे विधाता! क्यों भेज्यो फागुन?" बिरहा जिया अकुलाए | ||
− | "पिया बिनु कैसे होरी? कैसी | + | "पिया बिनु कैसे होरी? कैसी आई ये ऋत अलबेली?" |
फागुन फगुनाया, हँस पड़ी कमलिनी पोखर में | फागुन फगुनाया, हँस पड़ी कमलिनी पोखर में | ||
− | हाथ बढ़ा कर उसे तोड़ कर चढ़ा दिया शिव पूजन में! | + | हाथ बढ़ा कर उसे तोड़ कर, चढ़ा दिया, शिव पूजन में! |
− | "माँगूँ | + | "माँगूँ तुझसे भोले बाबा! मेरे पिया मुझे लौटा दो! |
दिया फागुन का वर तो शंभू! प्रियतम भी लौटा दो!" | दिया फागुन का वर तो शंभू! प्रियतम भी लौटा दो!" | ||
नेत्र मूँद कर नई दुल्हनिया, मंदिर में दीप जलावे | नेत्र मूँद कर नई दुल्हनिया, मंदिर में दीप जलावे | ||
− | + | बिछुड़े पिय की माला जपती, मन ही मन, मंद-मंद मुस्कावे! | |
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12:59, 21 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण
पकी पकी फसल लहराए ओढ़े पीली सरसों की चुनरिया
तेरे खेत में मक्का-बाजरा, मेरे, गेहूँ की बालियाँ
गाँव-गाँव घूम रही टोलियाँ, होलिका-दहन तैयारी
किसी की खाट, किसी का पाट, किसी के हाथ लकड़ियाँ!
नीला, पीला, हरा, जामुनी, नारंगी, लाल रंग सजा है
प्रकृति ने करवट बदली है, टेसू सा रंग खिला है!
डारी - डारी कूक रही, हूक उठाती, कारी-कारी कोयलिया
किसलय के चिकने पात छिप, झाँक रही, शर्मीली गौरैया ~
मंद सुगंध पुरवा से मिल कर परिमल पाँव पसारे
आम्र मंजरी ऊँची टहनी से, फागुन की तान, सुनावे!
"पीहू पीहू कहाँ मेरे पिय?" पपीहा बैन पुकारे
गोरी की, प्रेम-अगन, नयन जल पी, ज्वाला बन दहकावे।
"हे विधाता! क्यों भेज्यो फागुन?" बिरहा जिया अकुलाए
"पिया बिनु कैसे होरी? कैसी आई ये ऋत अलबेली?"
फागुन फगुनाया, हँस पड़ी कमलिनी पोखर में
हाथ बढ़ा कर उसे तोड़ कर, चढ़ा दिया, शिव पूजन में!
"माँगूँ तुझसे भोले बाबा! मेरे पिया मुझे लौटा दो!
दिया फागुन का वर तो शंभू! प्रियतम भी लौटा दो!"
नेत्र मूँद कर नई दुल्हनिया, मंदिर में दीप जलावे
बिछुड़े पिय की माला जपती, मन ही मन, मंद-मंद मुस्कावे!