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"आज सूरज ने बताया / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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गंगे
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आज सूरज ने बताया
अच्छा हुआ
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सर्दियों का अंत
हमेशा रही दूर तू दिल्ली से
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अब नजदीक आया
  
देख-देख यमुना की हालत
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भेद सारे भूलकर मिलजुल गये हैं
रोये रोज़ हिमालय
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दाल, चावल, नमक, पानी और सब्ज़ी
सीधी-सादी नदी हो गई
+
प्यार की चंचल थिरकती आग पर यूँ
उन्नति का शौचालय
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बन गई तीखी मसालेदार खिचड़ी
  
ले जा
+
कौन है जिसको
अपनी बहना को भी
+
न इसका स्वाद भाया
कहीं दूर तू दिल्ली से
+
  
दिल्ली की नज़रों में अब तू
+
पड़ गईं कमज़ोर दुख की स्याह रातें
केवल एक नदी है
+
शेष है पर जीतना अच्छे समय का
पर बूढ़े खेतों की ख़ातिर
+
पर्व खिचड़ी का करे उद्घोषणा यह
अब भी माँ जैसी है
+
आ गया है पास बिल्कुल दिन विजय का
  
कह तो
+
पल छिनों में
क्या भविष्य देखा जो
+
फिर नया उत्साह छाया
बही दूर तू दिल्ली से
+
  
दिल्ली तुझ तक पहुँचे
+
सूर्य पर आरोप था दक्षिण दिशा की
उससे पहले राह बदल दे
+
बेवजह ही तरफ़दारी कर रहा है
और लटें कुछ अपनी खोलें
+
भ्रम न फैले विश्व में झूठी ख़बर से
जाकर शिव से कह दे
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इसलिए वह उत्तरायण हो रहा है
  
मत हो
+
धूप ने फिर से
यूँ निश्चिंत
+
पुराना तेज पाया
ज़ियादा नहीं दूर तू दिल्ली से
+
 
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22:55, 28 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण

आज सूरज ने बताया
सर्दियों का अंत
अब नजदीक आया

भेद सारे भूलकर मिलजुल गये हैं
दाल, चावल, नमक, पानी और सब्ज़ी
प्यार की चंचल थिरकती आग पर यूँ
बन गई तीखी मसालेदार खिचड़ी

कौन है जिसको
न इसका स्वाद भाया

पड़ गईं कमज़ोर दुख की स्याह रातें
शेष है पर जीतना अच्छे समय का
पर्व खिचड़ी का करे उद्घोषणा यह
आ गया है पास बिल्कुल दिन विजय का

पल छिनों में
फिर नया उत्साह छाया

सूर्य पर आरोप था दक्षिण दिशा की
बेवजह ही तरफ़दारी कर रहा है
भ्रम न फैले विश्व में झूठी ख़बर से
इसलिए वह उत्तरायण हो रहा है

धूप ने फिर से
पुराना तेज पाया