भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हाइकु / भगवत शरण अग्रवाल / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भगवत शरण अग्रवाल |अनुवादक=कविता भ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
{{KKCatHaiku}}
 
{{KKCatHaiku}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
1
 +
करना पड़ा
 +
जो जीवन का सौदा-
 +
तुम्हें माँगूँगा।
  
 +
कन्न पड़लू
 +
जु जीवन कु सौदा
 +
तुम माँगलू
 +
2
 +
वर्षा में नहा
 +
तुम ऐसे मुस्काए
 +
फूल लजाए।
  
 +
बर्खा माँ नह्ये
 +
तुम इन हौंसिन
 +
फूल सरमैं
 +
3
 +
बौराए आम
 +
स्वप्नों तक पहुँची
 +
स्मृति-सुवास।
  
 +
बौळयें आम
 +
स्वीणौ तक पौंछिन
 +
खुदै खुसबो
 +
4
 +
तुम्हारे बिना
 +
दीवारें हैं, छत है
 +
घर कहाँ है?
 +
 +
त्यारा बिना त
 +
दिवाल-छत्त छन
 +
घौर कख छ
 +
5
 +
मेरे घर में
 +
छ: जने, चार दिशा
 +
नभ और मैं।
 +
 +
म्यारा घौर माँ
 +
छै झणा चार दिसा
 +
आगास-र-मि
 +
6
 +
स्वप्न में जाग
 +
जीत लिया संसार
 +
फिर सो गए।
 +
 +
स्वीणा माँ बिजी
 +
जित्याली यू संसार
 +
फीर से गेन
 +
7
 +
कौन–-सा राग
 +
टीन की छत पर
 +
बजाती बर्षा।
 +
 +
झणी कु राग
 +
टीनै कि छत्त परैं
 +
बजौन्दी बर्खा
 +
8
 +
वर्षा की रात
 +
बतियाते मेंढक
 +
चाय पकौड़ी।
 +
 +
बर्खा कि रात
 +
छ्वीं लगाँदा मेंडगा
 +
चा-पक्वड़ी सी
 +
9
 +
सावन भादों
 +
दिन देखें न रात
 +
यादों के मेघ।
 +
 +
सौंण-र-भादौं
 +
नि देख्दा दिन-रात
 +
खुदा बादळ
 +
10
 +
बूँद में समा
 +
सागर और सूर्य
 +
हवा ले उड़ी।
 +
बुंद माँ समै
 +
समोदर-सुर्ज द्वी
 +
बथौं ली उड़ी
 +
11
 +
लू से झुलसी
 +
जेठ की दुपहरी
 +
कराहे पंखे।
 +
 +
लू न झुलसी
 +
जेटै कि द्वफरा माँ
 +
पंखा कणैन
 +
12
 +
माँगूँ भी तो क्या
 +
सभी तो क्षणिक है
 +
तुम्हें माँग लूँ।
 +
 +
माँगौं बी त क्य
 +
सौब त च क्षणिक
 +
त्वे माँगी ल्यौं
 
</poem>
 
</poem>

13:50, 3 मई 2021 के समय का अवतरण

1
करना पड़ा
जो जीवन का सौदा-
तुम्हें माँगूँगा।

कन्न पड़लू
जु जीवन कु सौदा
तुम माँगलू
2
वर्षा में नहा
तुम ऐसे मुस्काए
फूल लजाए।

बर्खा माँ नह्ये
तुम इन हौंसिन
फूल सरमैं
3
बौराए आम
स्वप्नों तक पहुँची
स्मृति-सुवास।

बौळयें आम
स्वीणौ तक पौंछिन
खुदै खुसबो
4
तुम्हारे बिना
दीवारें हैं, छत है
घर कहाँ है?

त्यारा बिना त
दिवाल-छत्त छन
घौर कख छ
5
मेरे घर में
छ: जने, चार दिशा
नभ और मैं।

म्यारा घौर माँ
छै झणा चार दिसा
आगास-र-मि
6
स्वप्न में जाग
जीत लिया संसार
फिर सो गए।

स्वीणा माँ बिजी
जित्याली यू संसार
फीर से गेन
7
कौन–-सा राग
टीन की छत पर
बजाती बर्षा।

झणी कु राग
टीनै कि छत्त परैं
बजौन्दी बर्खा
8
वर्षा की रात
बतियाते मेंढक
चाय पकौड़ी।

बर्खा कि रात
छ्वीं लगाँदा मेंडगा
चा-पक्वड़ी सी
9
सावन भादों
दिन देखें न रात
यादों के मेघ।

सौंण-र-भादौं
नि देख्दा दिन-रात
खुदा बादळ
10
बूँद में समा
सागर और सूर्य
हवा ले उड़ी।
बुंद माँ समै
समोदर-सुर्ज द्वी
बथौं ली उड़ी
11
लू से झुलसी
जेठ की दुपहरी
कराहे पंखे।

लू न झुलसी
जेटै कि द्वफरा माँ
पंखा कणैन
12
माँगूँ भी तो क्या
सभी तो क्षणिक है
तुम्हें माँग लूँ।

माँगौं बी त क्य
सौब त च क्षणिक
त्वे माँगी ल्यौं