"हाइकु / नीलमेंदु सागर / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | भरा कटोरा। | ||
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+ | हवा डाकिया | ||
+ | बाँटता पीतपत्र | ||
+ | वसंतोत्सव। | ||
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+ | बाँटणी पीला पत्ता | ||
+ | वसंतो त्यार | ||
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+ | वैशाख तपा | ||
+ | तरु-डाल विकल | ||
+ | बेरुख हवा। | ||
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+ | बैसाख तपी | ||
+ | डाळा-बूटा ब्याकुल | ||
+ | असत्ती हवा | ||
+ | 5 | ||
+ | मृदंग बजा | ||
+ | नाच उठी बेसुध | ||
+ | वर्षा अप्सरा। | ||
+ | |||
+ | मृदंग बजी | ||
+ | नाचणी छ बिसुध्द | ||
+ | बर्खा-आँछरी | ||
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+ | क्वार बाँटता | ||
+ | ठंड की सुरसुरी | ||
+ | छींकता भोर। | ||
+ | |||
+ | कुरमुर्या बाँटू | ||
+ | ठण्डै सुरसुर्या सी | ||
+ | छिंकू बिंसरी | ||
+ | 7 | ||
+ | माघ बुढ़ाया | ||
+ | कम्बल ओढ़े खड़ा | ||
+ | देखे कुहासा। | ||
+ | |||
+ | मौ बुड्ढे ग्याई | ||
+ | पाँखलू ओढ़ी खड़ू | ||
+ | देखू कुरेड़ू | ||
+ | 8 | ||
+ | हरे सपने | ||
+ | देखते रहे वन | ||
+ | कुल्हाड़ी खाते। | ||
+ | |||
+ | हौरा-सी स्वीणा | ||
+ | देखणा रैंन बौंण | ||
+ | कुलाड़ी खै क | ||
+ | 9 | ||
+ | तन चंदन | ||
+ | मन मलयानिल | ||
+ | तुम ही तुम। | ||
+ | |||
+ | गत्ती चन्दन | ||
+ | मन मलय बथौं ह्वे | ||
+ | तू ई तू त छैं | ||
+ | 10 | ||
+ | ऊसर रिश्ते | ||
+ | कहाँ गये आँखों के | ||
+ | स्नेहिल मेघ। | ||
+ | |||
+ | बाँजा ह्वे रिस्ता | ||
+ | कख गैनी आँखों का | ||
+ | प्रेमी बादळ | ||
+ | 11 | ||
+ | सोने की झील | ||
+ | मेड़ों तक उमड़ी | ||
+ | सरसों फूली। | ||
+ | |||
+ | सोना कु ताल | ||
+ | मेंडों तलक बौडी | ||
+ | लय्या फुलि गी | ||
+ | 12 | ||
+ | पानी में खड़ी | ||
+ | निर्वसन धरती | ||
+ | लाज से मरी। | ||
+ | |||
+ | पाणी माँ खड़ी | ||
+ | नाँगी ह्वेकी पिरथी | ||
+ | सरमैं मोरी | ||
+ | -0- | ||
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13:52, 3 मई 2021 के समय का अवतरण
1
नौलखा हार
पहने चंद्रमुखी
रात ऊँघती।
नौलक्खा हार
पैरी जून-मुखड़ी
रात ऊँघणी
2
चाँद हँसा या
छलका है दूध का
भरा कटोरा।
जून हैंसी कि
छळकणी च दूधै
भोरीं कटोरी
3
हवा डाकिया
बाँटता पीतपत्र
वसंतोत्सव।
हवा डाकिया
बाँटणी पीला पत्ता
वसंतो त्यार
4
वैशाख तपा
तरु-डाल विकल
बेरुख हवा।
बैसाख तपी
डाळा-बूटा ब्याकुल
असत्ती हवा
5
मृदंग बजा
नाच उठी बेसुध
वर्षा अप्सरा।
मृदंग बजी
नाचणी छ बिसुध्द
बर्खा-आँछरी
6
क्वार बाँटता
ठंड की सुरसुरी
छींकता भोर।
कुरमुर्या बाँटू
ठण्डै सुरसुर्या सी
छिंकू बिंसरी
7
माघ बुढ़ाया
कम्बल ओढ़े खड़ा
देखे कुहासा।
मौ बुड्ढे ग्याई
पाँखलू ओढ़ी खड़ू
देखू कुरेड़ू
8
हरे सपने
देखते रहे वन
कुल्हाड़ी खाते।
हौरा-सी स्वीणा
देखणा रैंन बौंण
कुलाड़ी खै क
9
तन चंदन
मन मलयानिल
तुम ही तुम।
गत्ती चन्दन
मन मलय बथौं ह्वे
तू ई तू त छैं
10
ऊसर रिश्ते
कहाँ गये आँखों के
स्नेहिल मेघ।
बाँजा ह्वे रिस्ता
कख गैनी आँखों का
प्रेमी बादळ
11
सोने की झील
मेड़ों तक उमड़ी
सरसों फूली।
सोना कु ताल
मेंडों तलक बौडी
लय्या फुलि गी
12
पानी में खड़ी
निर्वसन धरती
लाज से मरी।
पाणी माँ खड़ी
नाँगी ह्वेकी पिरथी
सरमैं मोरी
-0-