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"हाइकु / ज्योत्स्ना प्रदीप / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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जीवन बीता
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वो कभी बनी राधा
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तो कभी सीता !
  
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जीवन बिति
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वा कबि बणी राधा
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त कबि सीता
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पलाश- वन
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पद्मिनी का हो मानो
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जौहर -यज्ञ!
  
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पलासु बौंण
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पद्मिनी कु हो माना
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जौहर जग्गिं
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मन उर्वरा
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बोया  बीज  प्रेम का
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आज है हरा
  
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मन उपजौ
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ब्वे छौ बीज माया कु
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आज च हैरू
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सहेजे मैनें
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तेरे दिए वो काँटें
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कभी न बाँटें !
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समोख्या मिन
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त्यारा दियाँ उ काँडा
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कबि नि बाँटी
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जलज लेटा
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झील क़े आँचल में
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लाडला बेटा
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कौंळ पोड़यूँ
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ताला पल्ला माँ यिन
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लड्यूत नौंनूँ सी
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रात न सोई
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अशर्फियाँ कहीं न
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चुरा ले कोई
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रात नि स्ययों
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असुरफी कखि न
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चोरि द्यो क्वी जि
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नभ से गिरी
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पुष्प के होंठ छूने
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बिंदास ओस
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आगास छुटि
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फूल क ओंट छूणों
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मस्त व ओंस
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रात महकी
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वो मौलश्री -माधवी
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सुबह साध्वी
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रात मैकी गे
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वा मौलश्री माधवी
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सुबेर जोग्णी
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भरे बादल
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तोड़ने आए भू का
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निर्जला व्रत
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भर्याँ बादळ
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त्वणों ऐन पिर्थी कु
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निर्जला बर्त
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अर्द्ध छिपे -से
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पाँव के बिछुवे से
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शर्मीले स्वप्न
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अद्धा लुक्याँ सी
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खुट्टा क बिछवा सि
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सर्म्याळा स्वीणा
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ज्यों ही लिपटा
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निर्लज्ज हो कोहरा
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काँपी थी रात।
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जन्नी भेंटे छौ
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बेसरम कुरेड़ू
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कौंपी छै रात
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12
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प्रकृति रोईं
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दरख़्तों  के लिबास
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उतारे कोई
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पर्किर्ती रुवे
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डाळौं का उँ लत्ता
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उतान्नू च क्वे
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14:16, 3 मई 2021 के समय का अवतरण

1
जीवन बीता
वो कभी बनी राधा
तो कभी सीता !

जीवन बिति
वा कबि बणी राधा
त कबि सीता
2
पलाश- वन
पद्मिनी का हो मानो
जौहर -यज्ञ!

पलासु बौंण
पद्मिनी कु हो माना
जौहर जग्गिं
3
मन उर्वरा
बोया बीज प्रेम का
आज है हरा

मन उपजौ
ब्वे छौ बीज माया कु
आज च हैरू
4
सहेजे मैनें
तेरे दिए वो काँटें
कभी न बाँटें !

समोख्या मिन
त्यारा दियाँ उ काँडा
कबि नि बाँटी
5
जलज लेटा
झील क़े आँचल में
लाडला बेटा

कौंळ पोड़यूँ
ताला पल्ला माँ यिन
लड्यूत नौंनूँ सी
6
रात न सोई
अशर्फियाँ कहीं न
चुरा ले कोई

रात नि स्ययों
असुरफी कखि न
चोरि द्यो क्वी जि
7
नभ से गिरी
पुष्प के होंठ छूने
बिंदास ओस

आगास छुटि
फूल क ओंट छूणों
मस्त व ओंस
8
रात महकी
वो मौलश्री -माधवी
सुबह साध्वी

रात मैकी गे
वा मौलश्री माधवी
सुबेर जोग्णी
9
भरे बादल
तोड़ने आए भू का
निर्जला व्रत

भर्याँ बादळ
त्वणों ऐन पिर्थी कु
निर्जला बर्त
10
अर्द्ध छिपे -से
पाँव के बिछुवे से
शर्मीले स्वप्न

अद्धा लुक्याँ सी
खुट्टा क बिछवा सि
सर्म्याळा स्वीणा
11
ज्यों ही लिपटा
निर्लज्ज हो कोहरा
काँपी थी रात।

जन्नी भेंटे छौ
बेसरम कुरेड़ू
कौंपी छै रात
12
प्रकृति रोईं
दरख़्तों के लिबास
उतारे कोई

पर्किर्ती रुवे
डाळौं का उँ लत्ता
उतान्नू च क्वे
-0-