"हाइकु / मंजु मिश्रा / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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| + | 1. | ||
| + | सर्दी ने छीने | ||
| + | जो पेड़ों के गहने | ||
| + | लाया वसंत | ||
| + | ह्यूँदन लूछी | ||
| + | डाळौ का तगाता | ||
| + | लाई बसन्त | ||
| + | 2. | ||
| + | तितलियों ने | ||
| + | वासंती खत लिखे | ||
| + | मौसम के नाम | ||
| + | प्वतळौं न इ | ||
| + | बसन्ती चिठ्ठी लेखि | ||
| + | मौसमा क नौं | ||
| + | 3. | ||
| + | सर्दी की भोर | ||
| + | चमकतीं हीरे –सी | ||
| + | ओस की बूँदें | ||
| + | ह्यूँदै बिन्सरी | ||
| + | चम्कदि हीरा जनि | ||
| + | ओंसै कि बुन्द | ||
| + | 4. | ||
| + | रात रोई थी | ||
| + | चमक रहे दूब पे | ||
| + | ओस- से आँसू | ||
| + | |||
| + | रात रुणि रै | ||
| + | कमकणा दुब्ला माँ | ||
| + | ओंसा क आँसु | ||
| + | 5. | ||
| + | लाया वसंत | ||
| + | खुशियों की आहट | ||
| + | बिखरे रंग | ||
| + | |||
| + | ल्हैगि बसन्त | ||
| + | खुस्यों का सबद इ | ||
| + | फैल्याँ च रंग | ||
| + | 6. | ||
| + | उड़ते ख्वाब | ||
| + | हवा की डोरी संग | ||
| + | जैसे पतंग | ||
| + | |||
| + | उड़दा स्वीणा | ||
| + | हवा कि डोरि गैल | ||
| + | जन पतंग | ||
| + | 7. | ||
| + | ढल रहा है | ||
| + | सागर की गोद मे | ||
| + | थका –सा सूर्य | ||
| + | |||
| + | ढ़लकुणु च | ||
| + | समोदरै खुक्लि माँ | ||
| + | थक्यूँ सि सुर्ज | ||
| + | 8. | ||
| + | पुल के पार | ||
| + | डूब रही है साँझ | ||
| + | लाल सिंदूरी | ||
| + | |||
| + | पुळा क पार | ||
| + | डुब्णी संध्या हपार | ||
| + | लाल सिंदुरी | ||
| + | 9. | ||
| + | मिल रहा है | ||
| + | धरती से आकाश | ||
| + | दृष्टि का भ्रम | ||
| + | |||
| + | मिलणु च वु | ||
| + | पिर्थी गैल आगास | ||
| + | नजरौ फर्क | ||
| + | 10. | ||
| + | रात झील में | ||
| + | दूध के कटोरे-सा | ||
| + | उतरा चाँद | ||
| + | |||
| + | रात ताल माँ | ||
| + | दुधा का कटोरा सि | ||
| + | उतरी जून | ||
| + | 11 | ||
| + | मानो गुलाल | ||
| + | उड़ा गया सूरज | ||
| + | शर्मीली शाम। | ||
| + | |||
| + | ल्हग्णु गुलाल | ||
| + | सुर्ज न उड़ै यालि | ||
| + | सर्म्याळि संध्या | ||
| + | 12 | ||
| + | लाल गगन | ||
| + | शाम के सिंदूर में | ||
| + | रंग रँगीला। | ||
| + | |||
| + | लाल आगास | ||
| + | ब्याखुनि सिन्दूर माँ | ||
| + | रंग रंगिलु | ||
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20:23, 3 मई 2021 के समय का अवतरण
1.
सर्दी ने छीने
जो पेड़ों के गहने
लाया वसंत
ह्यूँदन लूछी
डाळौ का तगाता
लाई बसन्त
2.
तितलियों ने
वासंती खत लिखे
मौसम के नाम
प्वतळौं न इ
बसन्ती चिठ्ठी लेखि
मौसमा क नौं
3.
सर्दी की भोर
चमकतीं हीरे –सी
ओस की बूँदें
ह्यूँदै बिन्सरी
चम्कदि हीरा जनि
ओंसै कि बुन्द
4.
रात रोई थी
चमक रहे दूब पे
ओस- से आँसू
रात रुणि रै
कमकणा दुब्ला माँ
ओंसा क आँसु
5.
लाया वसंत
खुशियों की आहट
बिखरे रंग
ल्हैगि बसन्त
खुस्यों का सबद इ
फैल्याँ च रंग
6.
उड़ते ख्वाब
हवा की डोरी संग
जैसे पतंग
उड़दा स्वीणा
हवा कि डोरि गैल
जन पतंग
7.
ढल रहा है
सागर की गोद मे
थका –सा सूर्य
ढ़लकुणु च
समोदरै खुक्लि माँ
थक्यूँ सि सुर्ज
8.
पुल के पार
डूब रही है साँझ
लाल सिंदूरी
पुळा क पार
डुब्णी संध्या हपार
लाल सिंदुरी
9.
मिल रहा है
धरती से आकाश
दृष्टि का भ्रम
मिलणु च वु
पिर्थी गैल आगास
नजरौ फर्क
10.
रात झील में
दूध के कटोरे-सा
उतरा चाँद
रात ताल माँ
दुधा का कटोरा सि
उतरी जून
11
मानो गुलाल
उड़ा गया सूरज
शर्मीली शाम।
ल्हग्णु गुलाल
सुर्ज न उड़ै यालि
सर्म्याळि संध्या
12
लाल गगन
शाम के सिंदूर में
रंग रँगीला।
लाल आगास
ब्याखुनि सिन्दूर माँ
रंग रंगिलु
