भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"(तुम और मैं ) त्वम् अहञ्च / कविता भट्टः" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }}CatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 27: पंक्ति 27:
 
-0-
 
-0-
 
हिन्दी मूल रचना निम्नलिखित लिंक पर पढ़ सकते हैं-
 
हिन्दी मूल रचना निम्नलिखित लिंक पर पढ़ सकते हैं-
[[     ]]
+
[[ तुम और मैं / कविता भट्ट]]
 
+
  
 
</poem>
 
</poem>

17:28, 5 मई 2021 का अवतरण

CatKavita}}
  • [ संस्कृतानुवादकः - आचार्यः विशालप्रसादभट्टः]

अहं निर्जननीलाञ्चलनद्यां
त्वं पिपासु पथिक! प्रगाढप्रेमयुतः।
अहं सुरभितस्वप्नानां स्वर्णशृङ्खला
त्वं प्रहरप्रशान्तपुण्यप्रकाशयुतः।
विरहवेदना रात्रीणामहम्,
त्वं प्रतीक्षितप्रणयस्य प्रयासयुतः।
अहमप्रकटोद्घटिताधराणां कामना,
त्वं प्रफुल्लतायाः प्रशस्तप्रवासयुतः।
निःसङ्गः किञ्च निरन्तरगतिरहं,
त्वं प्रखरप्रतिछायायाः प्रतिभासयुतः।
अहं निष्पापनिश्छलनिमित्तनिबन्धनः,
त्वं प्रकृष्टप्रयोजनस्य प्रत्याशयुतः।
लतिका धरणीतलात् विकसिताऽहम्,
त्वं तरुवरस्य प्रबलप्रसारयुतः,
अहं मूकमन्त्रमानसिकजपे,
त्वमोच्चारितप्रार्थनानां प्रसादयुतः।
मन्दमधुरलयबद्धगीतमहम्,
त्वमोन्मुक्तगानस्य प्रतिध्वनितप्रहासयुतः।
-0-
हिन्दी मूल रचना निम्नलिखित लिंक पर पढ़ सकते हैं-
तुम और मैं / कविता भट्ट