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"सुबह सवेरे तुम उसे मत जगाना / अफ़अनासी फ़ेत / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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सुबह-सवेरे तुम उसे मत जगाना
मीठी नींद सोई हुई है वो सुबह-सवेरे 
छाती में धड़के भोर का रंग सुहाना
दमकें जगमगाएँ उसके गालों के घेरे 

सुबह सवेरे तकिया होता नरम गरम 
और नींद भी लगे गर्म-सी थकान भरी
काले कुन्तल कन्धों पर फैले नरम नरम 
दो चोटियाँ लटकी दो तरफ़ बड़ी-बड़ी

खिड़की की पाटी पर उसने शाम गुजारी 
बैठी रही थी वहाँ अकेले वो काफ़ी देर
रही देखती खेल बादलों का चमत्कारी
फिसले चाँद आसमान में करे हेर-फेर

जैसे-जैसे चाँद का खेला होता चटकीला
जैसे जैसे कोयल की कूक बढ़ती जाती
वैसे-वैसे उसका उदास मन होता गीला
घबराहट से मन की धड़कन बढ़ती जाती  

उसकी जवान छाती यूँ धड़केइसीलिए
इसीलिए दमकें यूँ उसके गालों के घेरे
मत जगाओ उसे अभी तुम,बस, इसीलिए
मीठी नींद सोई हुई है वो सुबह-सवेरे 

1842

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
   Афанасий Фет
            На заре ты её не буди

На заре ты её не буди,
На заре она сладко так спит;
Утро дышит у ней на груди,
Ярко пышет на ямках ланит.

И подушка ее горяча,
И горяч утомительный сон,
И, чернеясь, бегут на плеча
Косы лентой с обеих сторон.

А вчера у окна ввечеру
Долго-долго сидела она
И следила по тучам игру,
Что, скользя, затевала луна.

И чем ярче играла луна,
И чем громче свистал соловей,
Все бледней становилась она,
Сердце билось больней и больней.

Оттого-то на юной груди,
На ланитах так утро горит.
Не буди ж ты ее, не буди…
На заре она сладко так спит!

1842 г.