भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वर्जनाएँ अब नहीं / महेंद्र नेह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेंद्र नेह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:22, 20 मई 2021 के समय का अवतरण

आसमानों
अर्चनाएँ
वन्दनाएँ अब नहीं ।

ज़िन्दगी अपनी
किसी की मेहरबानी भर नहीं
मौत से बढ़कर
कोई आतंक कोई डर नहीं
मेहरबानों
याचनाएँ
दास्ताएँ अब नहीं ।

ये हवा पानी
ज़मीनें, ये हमारे ख़्वाब हैं
ये गणित कैसी
ये सबके सब तुम्हारे पास हैं
देवताओ
ताड़नाएँ
वर्जनाएँ अब नहीं ।

जन्म से पहले
लकीरें हाथ की तय हो गईं
इक सिरे से
न्याय की सम्भावना ग़ुम हो गई
पीठिकाओ
न्यायिकाएँ
संहिताएँ अब नहीं ।