भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं / अज़हर फ़राग़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज़हर फ़राग़ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:38, 29 मई 2021 के समय का अवतरण

उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं
दस्त-ए-दुआ' में रक्खा हुआ आइना हूँ मैं

अब जा के हो सकेगी मोहब्बत वसूक़ से
ख़ुद से बिछड़ते वक़्त किसी से मिला हूँ मैं

आबाद है ख़ज़ाने की अफ़्वाह से वजूद
मतरूक जंगलों का कोई रास्ता हूँ मैं

दस्तार काग़ज़ी है फ़ज़ीलत है नाम की
छोटों की मेहरबानी से घर में बड़ा हूँ मैं

रोकर न सोया जाए तो क्या नींद का जवाज़
बिस्तर की हर शिकन में पड़ा जागता हूँ मैं

हूँ अपनी रौशनी की अज़िय्यत में मुब्तला
जलता हुआ चराग़ हूँ उल्टा पड़ा हूँ मैं