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"तुम आती हो / अशोक शाह" के अवतरणों में अंतर

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उसे बाहर निकालने की ज़रूरत न पड़े
  
 
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14:50, 26 जून 2021 के समय का अवतरण

तुम आती हो
जल उठता है शाम का दिया
दिन होने की ज़रूरत नहीं होती

मेरा वश चले तो
सूरज को रख दूँ किसी ताखे पर
और भूल जाऊँ हमेशा के लिए
ताकि झाड़-पोंछ कर रोज़ तुम्हें
उसे बाहर निकालने की ज़रूरत न पड़े