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"फिर सियासत ने चली कोई नयी इक चाल है / उदय कामत" के अवतरणों में अंतर
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17:16, 2 जुलाई 2021 के समय का अवतरण
फिर सियासत ने चली कोई नयी इक चाल है
हर जगह अब दिख रहा मज़लूम क्यूँ बेहाल है
मुल्क को तक़्सीम करने के नए मनसूबे हैं
अम्न को बर्बाद करने अब बिछाया जाल है
अब ख़ुशामद करने वालों का है निकला क़ाफ़िला
क़दमों में आम आदमी पज़-मुर्दा-ओ-पामाल है
जब उठाती हैं रईयत कोई भी मुश्किल सवाल
तू बयाँ करता भला फ़ौजियों का क्यूँ हाल है
मत नसीहत दो दवा-ए-तल्ख़ पीने की हमें
जब हिफ़ाज़त अपनी करती मुफलिसी बन ढाल है
थक गए जम्हूरियत में सुन मुनाफ़िक़ बातें पर
आह भी निकली नहीं हर होंठ पर तबख़ाल है
सुबह वो आएगी इस उम्मीद में जब मिट गए
तब बिरहमन ने कहा ये अच्छा अगला साल है