भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सिहरा ताल-हाइकु / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ }} [[Catego...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’  
+
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'   
 +
|संग्रह= मेरे सात जनम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’  
 
}}
 
}}
 
[[Category:हाइकु]]
 
[[Category:हाइकु]]
पंक्ति 72: पंक्ति 73:
 
पोंछो ये पलकें
 
पोंछो ये पलकें
 
मोतियों भरे हैं  ये
 
मोतियों भरे हैं  ये
सागर छलके ।  
+
सिन्धु छलके ।  
 
98
 
98
 
लुटाओ नहीं  
 
लुटाओ नहीं  
पंक्ति 85: पंक्ति 86:
 
जैसे नील गगन  
 
जैसे नील गगन  
 
नहीं है छोर ।  
 
नहीं है छोर ।  
-0-
 
 
</poem>
 
</poem>

01:34, 5 जुलाई 2021 के समय का अवतरण

81
तुम जो बोलीं
बातों के दरिया में
मिसरी घोली ।
82
समेटा गया -
न सुधियों का जाल
सिहरा ताल ।
83
छोटी-सी चूक
अधूरा -सा जीवन
बाकी थी हूक ।
84
दूर है गाँव
बची केवल धूप
कहीं न छाँव ।
85
वही है मीत
रोम -रोम में बसी
जिसके प्रीत ।
86
बीते बरसों
अभी तक मन में
खिली सरसों ।
87
परदेस में
उठी तुमको पीर
मैं था अधीर ।
88
माँगी तुमने
जब रब से दुआ
मन था चुआ ।
89
माथा जो छुआ
हृदय-सागर में
जाने क्या हुआ ।
90
जागी उमंग
बज उठी हो जैसे
जलतरंग ।
91
समय गया
कुछ पल ठहर
उठी लहर ।
92
भीगे थे कूल
लहरों के आँगन
बिछे दुकूल ।
93
मन की मीन
सुधियों -सी घिरती
रही तिरती ।
94
व्याकुल मन
दो पल का मिलन
यही जीवन ।
95
जीभर जियो
मिला जो प्रेमरस
बाँट दो , पियो ।
96
नयन-जल
पिंघला गई कोई
पीर अतल ।
97
पोंछो ये पलकें
मोतियों भरे हैं ये
सिन्धु छलके ।
98
लुटाओ नहीं
अनमोला खज़ाना
मुश्किल पाना ।
99
गंगा की धार
 है बहनों का प्यार
बही बयार।
100
पावन मन
जैसे नील गगन
नहीं है छोर ।