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Kavita Kosh से
न्याय व्यवस्था की चाल डगमग थी
युद्ध के बीच शान्ति खोजते हुए
हम घर से घाट उतार दिए गए थे
खाप पंचायतें बढ़ती जा रही थीं
उस दिन दूरबैठे मेरी फ़ोटोग्राफ़ी को पुरस्कार मिला था
मेरी गिरफ़्तारी सुनिश्चित हो चुकी थी
मैंने कहा यह कोई सपना नहीं
मेरे होने की क़ीमत है, जिसे मुझे चुकाना है ।
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